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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाना है। इस प्रकार दिसम्बर आ जायेगा। हम दिसम्बरके अन्त तक ही लौट सकेंगे। और यदि इतनेपर भी समझौता न हुआ तो हम जहाँके-तहाँ रहेंगे। ऐसा करनेकी अपेक्षा सीधा रास्ता तो यही जान पड़ता है कि भारत जानेका विचार छोड़ दें। फिर भी, जिस विषयपर यहाँ चर्चा की गई है, उसको सब लोगोंके सामने रखना जरूरी है। फिर, इस प्रकार मामलेको लम्बा करनेसे पैसेका खर्च भी बढ़ेगा। मैं खुद बिल्कुल निश्चित राय नहीं दे सकता। सत्याग्रहीकी हैसियतसे मेरी अकेलेकी राय पूछी जाये तो मैं एक ही जवाब दूँगा कि हमें तुरन्त ट्रान्सवालमें फिर दाखिल हो जाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-११-१९०९

३०३. लन्दन

[अक्तूबर ८, १९०९के बाद]

नेटालका शिष्टमण्डल

नेटालके शिष्टमण्डलसे मिलनेके लिए [दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय] समितिकी खास बैठक बुलाई गई थी। वह गत बुधवारको हुई थी। उसमें लॉर्ड ऍम्टहिल, सर रेमंड वेस्ट, डॉक्टर थॉर्नटन, सर मंचरजी भावनगरी, श्री पोलक और श्री रिच उपस्थित थे। श्री आंगलियाने सर रेमंडको सारी स्थिति बताई। लॉर्ड ऍम्टहिलने उनसे इससे सम्बन्धित सारे कागजात माँगे। इन्हें वे खुद पढ़ेंगे। उन्होंने लॉर्ड क्रू का उत्तर पढ़नेके बाद कहा कि अब-ज्यादा कुछ करने योग्य नहीं रहता।

श्री आंगलियाने लन्दनके[१] 'डेली टेलीग्राफ' के सम्पादकको सारे तथ्य भेज दिये हैं। लॉर्ड क्रू का उत्तर मिला है कि वे और लॉर्ड मॉर्ले, दोनों इसपर विचार कर रहे हैं। वे नेटालके विषयमें विचार कर रहे हैं, उनके इस उत्तरसे भी प्रकट होता है कि नेटालपर ट्रान्सवाल का असर पड़ता है। उनको यह भय लगा हुआ है कि कहीं नेटाल भी न सत्याग्रहका रास्ता अख्तियार कर ले।

श्री आमद भायात उसी जहाजसे लौट रहे हैं, जिससे यह पत्र जा रहा है। उनको लगता है कि अब यहाँ कोई काम शेष नहीं रहा। ऐसा जान पड़ता है कि जबतक ट्रान्सवालका शिष्टमण्डल यहाँ रहेगा तबतक श्री आंगलिया भी यहाँ रहेंगे। शायद श्री अब्दुल कादिर भी वैसा ही करेंगे।

आत्मबलकी नीति

श्री गांधीने शुक्रवारकी रातको इमर्सन क्लबके सदस्योंके सामने "आत्मबलकी नीति" पर भाषण दिया।[२] यह क्लब यहाँकी नीतिर्वाधिनी सभा (यूनियन ऑफ़ एथिकल सोसाइटीज़) का है। सभाकी अध्यक्षता कुमारी विटरबॉटमने की थी। भारतीयोंकी उपस्थिति खासी थी। उनमें

  1. मूलमें लखनऊ है, जो स्पष्टतः छपाईकी भूल है।
  2. देखिए "भाषण: इमर्सन क्लबमें", पृष्ठ ४७०।