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प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मन्त्रीको

बीच पंजीयक द्वारा दिये गये मौखिक आश्वासनोंका वांछित परिणाम हुआ और पंजीयन अबाध गतिसे होने लगा । इसलिए पंजीयकने दूसरे हस्ताक्षरकर्तासे दुबारा मिलनेपर पूछा कि क्या सुचनाको अब भी प्रकाशित करना आवश्यक है और दूसरे हस्ताक्षरकर्ताने यह जाननेपर कि पंजीयन अबाध गतिसे हो रहा है, निषेधात्मक उत्तर दे दिया ।

१५. फरवरीकी २२ तारीखको दूसरे हस्ताक्षरकर्ताने उपनिवेश-सचिवकी स्वीकृति के लिए और उनकी अनुमतिसे प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम (इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट) का संशोधन करने और एशियाई कानूनको रद करनेके लिए एक विधेयकका मसविदा' (ड्राफ्ट बिल) पेश किया । इस पत्रको पहुँच बाकायदा भेजो गई, किन्तु कानूनको रद करनेके उल्लेखका कोई खण्डन नहीं किया गया ।

१६. अन्तमें, यद्यपि उपनिवेश-सचिवने सर्वोच्च न्यायालयके सामने अपने हलफिया बयानमें यह कहा है कि उन्होंने कानूनको रद करनेका वचन कभी नहीं दिया और यद्यपि एशियाई पंजीयकने उस बयानका समर्थन किया है, फिर भी उपनिवेश-सचिवने इस वचनको गम्भीरता- पूर्वक अस्वीकार नहीं किया, जैसा कि विधेयकके दूसरे वाचन में दिये गये उनके भाषणसे प्रकट होता है; और वे कमसे-कम यह तो स्वीकार करते ही हैं कि दूसरे हस्ताक्षरकर्ताके साथ कानूनको रद करनेके प्रश्नपर उन्होंने खुलकर बातचीत की थी ।

१७. जिन ब्रिटिश भारतीयोंको एशियाई पंजीयकने कानूनको रद करनेका आश्वासन दिया था, उनके कुछ वक्तव्य इसके साथ संलग्न हैं ।

१८. इसके सिवा प्रार्थी संघ महामहिम सम्राट्की सरकारका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करता है कि रद करनेवाले विधेयककी रूपरेखा वस्तुतः बना ली गई थी और उपनिवेश-सचिवने कुछ लोगोंमें इसे निजी तौरपर घुमानेके लिए उसे छापनेका हुक्म भी दे दिया था । वह दूसरे हस्ताक्षरकर्ताको दिखाया गया था और उसे सिर्फ इसलिए वापस ले लिया गया था कि दूसरे हस्ताक्षरकर्ताने उसमें कुछ संशोधन करनेकी प्रार्थना की थी । वे सब संशोधन, कुछ परिवर्तनोंके साथ, उस कानूनमें शामिल कर लिये गये हैं, जिसकी यहाँ चर्चा की जा रही है । उनमें अपवाद केवल वह संशोधन है जो शिक्षित एशियाइयोंके दर्जेको प्रभावित करता है ।

कानूनको बरकरार रखना अनावश्यक

१९. उपनिवेश सचिवके वचनके अतिरिक्त, एक ही विषय से सम्बन्धित एक ही तरह के दो कानून कायम रखना केवल परेशानी और दुःखजनक परिणामोंका ही कारण हो सकता है । यह कहा गया है कि सरकारका इरादा १९०७ के अधिनियम २ को निःसत्व मानकर चलना । किन्तु प्रार्थी संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है, उसके लिए लम्बे और तीव्र संघर्ष के बाद अनिश्चयको स्थितिमें रहना असम्भव है । इन दोनों कानूनों द्वारा जो अधिकार दिये गये हैं, वे अज्ञानी, अयोग्य और पूर्वग्रहसे ग्रस्त अफसरों द्वारा ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध काममें लाये जा सकते हैं और उनके परिणाम घातक हो सकते हैं ।

१. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १००-०१ ।

२ और ३. वही, परिशिष्ट ७ ।

४. देखिए परिशिष्ट ४ ।

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