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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२०. प्रार्थी संघको यह कहने की इजाजत दी जाये कि दूसरे कानूनसे १९०७ के कानून २ का प्रभाव समाप्त नहीं होता । सरकारकी मर्जीसे उन दोनों कानूनोंमें से किसीको भी एशियाई समाजके विरुद्ध काममें लाया जा सका है । इसी प्रकार एशियाइयोंको भी छूट है कि यदि उनसे कोई लाभ हो तो वे दोनोंमें से किसीसे भी लाभ उठा लें ।

२१. उदाहरणके लिए, यद्यपि नये कानूनके अन्तर्गत तुर्कीके मुसलमान पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) की परेशानी-भरी पद्धतिसे मुक्त हैं, फिर भी ट्रान्सवालमें आनेवाले किसी तुर्क मुसलमानके विरुद्ध १९०७के अधिनियम २ के अन्तर्गत कार्रवाई की जा सकती है । इसलिए ब्रिटिश भारतीय समाजको एक मुख्य आपत्ति अब भी ऐसी रह जाती है जिसका निराकरण नहीं होता । उपनिवेश-सचिवने इस सन्दर्भ में जो कुछ कहा, वह असंगत है । वे कहते हैं :

वे (एशियाई) इन कठिनाइयोंको इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि १९०७ के कानून
२ के अन्तर्गत गणराज्यकी संसदके १८८५ के कानून ३ में दी गई एशियाइयोंकी परि-
भाषा कायम रखी गई और उस परिभाषामें तुर्की साम्राज्यके प्रजाजन तुर्क मुसलमान
इस देशके निवासी नहीं माने गये । यह कहा गया कि इस व्यवस्थाके द्वारा तुर्कीको देशमें
न आने देना उद्दिष्ट नहीं है; किन्तु यह इस्लाम धर्मपर केवल एक लांछन और कलंक
लगाना है । किसी भी गोरेका या सरकारका वैसा करनेका रंचमात्र भी इरादा नहीं
है । यहाँ तुर्क संख्याम हमेशा कम रहे हैं। और मुझे बताया गया है कि अब यहाँ
तुर्क हैं ही नहीं और कमसे-कम तुर्कीसे इस देशमें उनके किसी बड़ी संख्यामें आनेका
कोई भय नहीं है । तुर्कीके जो प्रजाजन यहाँ आते हैं, वे केवल ईसाई हैं तथा कुछ माननीय
सदस्योंने जिनके विरुद्ध तीव्र आपत्तिकी है, वे सीरियाई और अन्य लीवान्टी' हैं । किन्तु
वे ईसाई हैं और तुर्की साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजन इस देशमें भर जायेंगे, ऐसा खतरा
कभी पैदा नहीं हुआ और न कभी पैदा होने की सम्भावना है । उस आपत्तिको, जो
भावनात्मक आधारपर की गई थी और जिसका निराकरण क्रियात्मक आधारपर करनेमें
कोई आपत्ति न थी, हमने दूर कर दिया है । माननीय सदस्य देखेंगे कि सदनके सामने
प्रस्तुत विधेयक ( बिल) से वह प्रतिबन्ध हट जाता है जो किसी व्यक्तिके प्रवेशपर
केवल तुर्क साम्राज्यका प्रजाजन होने से लगता था ।

२२. इसके अतिरिक्त यद्यपि विचाराधीन कानूनसे अवयस्क व्यक्तिगत पंजीयनसे मुक्त हो जाते हैं, किन्तु १९०७ का कानून २ अनुमानतः अवयस्कोंके विरुद्ध प्रयुक्त किया जा सकता है और उससे बेहद तकलीफें पैदा हो सकती हैं ।

२३. नये कानूनमें शराब-सम्बन्धी अपमानास्पद धारा कहीं नहीं रखी गई, किन्तु पुराने कानूनके अन्तर्गत कोई भी एशियाई छूटके अनुमतिपत्र (परमिट) की अर्जी दे सकता है । कदाचित यह कहा जायेगा कि यह तो स्पष्ट ही एक सुविधा है । किन्तु प्रार्थी संघकी नम्र सम्मतिम यह छिपा हुआ अपमान उपनिवेशकी कानूनकी पुस्तकको अभीतक विरूपित कर रहा है ।

२४. सरकार अपंजीकृत एशियाईके विरुद्ध दोनों में से किसी भी कानूनके अन्तर्गत कार्रवाई कर सकेगी और इस तरह ऐसे एशियाईको कदम-कदमपर तंग कर सकेगी ।

१. पूर्वी मध्यसागरके द्वीपों और पदोसके देशोंके निवासी ।

२. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२५ ।

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