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३०७. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
अक्तूबर १४, १९०९

प्रिय हेनरी,

आपका मद्राससे भेजा हुआ तार मिला। मुझे दुःख है कि श्री डोककी किताब अभी तैयार नहीं है। प्रकाशनसे पहले भेजी गई दो प्रतियाँ मुझे अभी मिली हैं; लेकिन मेरा खयाल है, इनमें से एक आपको भेजनेकी जरूरत नहीं है। प्रतियाँ तैयार होते ही मैं श्री कूपरसे कहूँगा कि वे २५० प्रतियाँ श्री नटेसनको भेज दें।

'टाइम्स' में मद्रासकी सभाका[१] जो हाल छपा है, उसकी कतरन इसके साथ भेज रहा हूँ। आपको प्रिटोरियाका एक तार भी मिलेगा। मैं नहीं जानता, इसका क्या अर्थ है। श्री स्मट्सके जाने के बाद बातचीत बेशक जारी रही है। लेकिन हमें तो यह समझकर ही काम करना है, मानो बातचीत असफल हो गई हो। भारतीय प्रवासी-आयोग (इमिग्रेशन कमीशन) की रिपोर्ट इस मौकेपर अच्छी है। मेरा खयाल है, आप जब कलकत्तेमें हों तब एक अखिल भारतीय शिष्टमण्डलको लॉर्ड मिन्टोसे[२] मिलानेकी कोशिश की जाये। आप सर चार्ल्स टर्नरको अपने साथ ले सकते हैं, यद्यपि मैं आपकी कठिनाई समझ सकता हूँ। लेकिन वे आपका साथ दें या न दें, शिष्टमण्डल बनाने में कोई कठिनाई न होगी; मद्रास, बम्बई, इलाहाबाद, लाहौर, आदि [नगरों] से एक-एक प्रतिनिधि आ सकता है। मैं आपको कांग्रेस और मुस्लिम कान्फ्रेंसमें प्रतिनिधि बनानेके सम्बन्धमें लिख रहा हूँ। मेरा खयाल है, उनके अधिवेशन लगभग एक साथ होंगे; लेकिन अगर वे एक ही दिन हों तो आप मुस्लिम कान्फ्रेंसमें जायें या कांग्रेसमें, इस बारेमें आपको अपनी विवेकबुद्धिसे काम लेना होगा। अनाक्रामक प्रतिरोधकी दृष्टिसे तो मुझे लगता है कि मुस्लिम कान्फ्रेंसमें जाना सबसे अच्छा होगा। मैं यह भी मान लेता हूँ कि आप अलीगढ़ जायेंगे।

मैं अब भी धीरे-धीरे प्रगति कर रहा हूँ। मैंने सोचा था कि मेरे पत्रके उत्तरमें लॉर्ड क्रू का पत्र तुरन्त आ जायेगा; लेकिन यह पत्र लिखनेके वक्त तक (गुरुवारके प्रातःकाल तक) उत्तर नहीं आया है; और जबतक वे बातचीतका असली नतीजा प्रकाशित करनेका अधिकार नहीं देते, मुझे लगता है तबतक कुछ नहीं किया जा सकता। अगर उनका उत्तर इस सप्ताह आ जाये तो भी अब इसमें सन्देह है कि मैं आगामी ३० तारीखसे पहले [लोक-] शिक्षणका काम पूरा कर सकूँगा। आप करीब-करीब सारे भारतकी सैर करेंगे। यह एक विशेष सुविधा है, जो अभीतक मुझे भी नहीं मिल पाई है। इसलिए मैंने यहाँ ज्यादा गम्भीर निरीक्षणके बाद जो निश्चित निष्कर्ष निकाले हैं, उन्हें, मेरा खयाल है, अब मुझे लिख डालना चाहिए।[३]

  1. यह ११ अक्तूबरको हुई थी।
  2. (१८४५-१९१४); भारतके वाइसरॉय और गवर्नर-जनरल, १९०५-१०।
  3. साबरमती संग्रहालयकी दफ्तरी प्रतिमें यहाँसे आगेके दो सफे खो गये हैं जो सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसायटी, पूनामें सुरक्षित प्रो॰ गोखलेके फागजातमें रखी हस्तलिखित प्रतिसे के लिये गये हैं, और डॉ॰ प्रा॰ जी॰ मेहताकी पुस्तक एम० के० गांधी ऐंड द साउथ आफ्रिकन इंडियन प्रॉब्लेममें दिये गये इस पत्रके अंशसे मिला लिये गये हैं।