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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह बात मेरे दिमागमें पहलेसे ही थी, लेकिन कोई निश्चित और साफ चित्र नहीं उभरा था। मुझे पीस ऐंड आर्बिट्रेशन सोसायटीकी ओरसे "पूर्व और पश्चिम" विषयपर बोलनेके[१] लिए जो निमन्त्रण दिया गया था उसे स्वीकार करनेके बाद मेरा हृदय और मस्तिष्क, दोनों अधिक क्रियाशील हो उठे। सभा पिछली रात हुई और मेरा खयाल है कि वह काफी सफल रही। श्रोता बड़े उत्साही थे, लेकिन दक्षिण आफ्रिकाकी स्थितिके बारेमें कुछ उद्धृत प्रश्न भी किये गये। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हैम्पस्टेडमें भी दक्षिण आफ्रिकाके दुःखद नाटककी हिमायत करनेवाले और भारतीय व्यापारियोंको सड़ा घाव और न जाने क्या-क्या बताकर, उनके बारेमें तरह-तरहकी ऊल-जलूल बातें कहनेवाले काफी लोग थे। एक बहुत ही वृद्ध महिलाने उठकर कहा कि आप राज्य-विरोधी बातें कर रहे हैं। और जैसे हमें दक्षिण आफ्रिकामें रीति-रिवाज और ऊपरी बातों—उदाहरणके लिए अँगुलियोंके निशान—के बारेमें सोचनेवाले और उन्हींसे चिपके रहनेवाले अन्धविश्वासियोंसे निबटना पड़ता है, वैसा ही पिछली रात मुझे फ्रेंड्स हाउसमें भी करना पड़ा। मुझसे किये गये प्रश्नोंकी झड़ीमें मेरा मुख्य उद्देश्य खो गया, और तफसीलकी बातोंपर ही गरमागरम बहस होती रही। उससे प्राप्त निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

(१) पूर्व और पश्चिमके बीच भेदकी कोई दुर्लघ्य दीवार नहीं है।

(२) परिचमी या पूर्वी सभ्यता-जैसी कोई चीज नहीं है। हाँ, एक आधुनिक सभ्यता अवश्य है और वह सर्वथा भौतिकवादी है।

(३) आधुनिक सभ्यतासे प्रभावित होनेके पूर्व यूरोपके लोग बहुत-सी बातोंमें पूर्वके लोगोंसे, या कमसे कम भारतीयोंसे, काफी मिलते-जुलते थे; और आज भी जो यूरोपीय आधुनिक सभ्यताके प्रभावसे अछूते हैं, वे उस सभ्यताके सपूतोंकी तुलनामें भारतीयोंसे बहुत ज्यादा आसानीसे घुलमिल सकते हैं।

(४) भारतपर राज्य ब्रिटिश लोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि रेल, तार, टेलीफोन, और सभ्यताके विजय-भूषण माने जानेवाले लगभग सारे आविष्कारोंके माध्यमसे यही आधुनिक सभ्यता कर रही है।

(५) बम्बई, कलकत्ता और भारतके अन्य प्रमुख नगर मुसीबतके असली स्थान हैं।

(६) अगर कल ब्रिटिश शासनका स्थान आधुनिक तौर-तरीकोंपर आधारित भारतीय शासन ले ले, तो इससे भारतकी स्थिति अच्छी नहीं हो जायेगी। तब भारतीय भी यूरोप या अमरीकाके दूसरे या पाँचवें संस्करण बनकर रह जायेंगे। हाँ, इतना जरूर होगा कि जो धन बहकर इंग्लैंड चला जाता है, उसका कुछ अंश देशमें ही रह जायेगा।

(७) पूर्व और पश्चिम वास्तविक रूपमें तभी मिल सकते हैं, जब पश्चिम आधुनिक सभ्यताका लगभग पूर्ण रूपसे परित्याग कर दे। दिखावेमें तो वे तब भी मिल सकते हैं, जब पूर्व भी आधुनिक सभ्यताको स्वीकार कर ले; लेकिन वह मिलन सशस्त्र-शान्तिके समान होगा ऐसी शान्तिके समान, जैसी उदाहरण के लिए, जर्मनी और इंग्लैंडके बीच है। ये दोनों ही देश एक-दूसरे द्वारा लील लिये जानेके खतरेसे बचनेके लिए मृत्युके गढ़में अपने दिन काट रहे हैं।

(८) यदि कोई एक व्यक्ति या व्यक्तियोंका संगठन सारी दुनियाको सुधारना शुरू करे या उसकी बात भी सोचे तो यह हिमाकत ही होगी। ऊँचे दर्जेकी कारीगरीसे बने

  1. देखिए "भाषण: हैम्पस्टेडमें", पृष्ठ ४७४-७६।