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पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

और तेज चालवाले वाहनोंके सहारे भी ऐसा करनेका प्रयत्न असम्भवको सम्भव बनानेका प्रयत्न होगा।

(९) सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि भौतिक सुविधाओंकी वृद्धि होनेसे नैतिक विकासमें किसी तरह कोई सहायता नहीं मिलती।

(१०) चिकित्सा-विज्ञान इस काले जादूका सार है; जिसे हम उच्च चिकित्सा-कौशल मानते हैं, उससे तो नीमहकीमी लाख दर्जे अच्छी है।

(११) अस्पताल वे साधन हैं जिनका उपयोग शैतान अपने उद्देश्योंकी पूर्तिके लिए, अपने साम्राज्यपर अपना अधिकार बनाये रखनेके लिए करता है। वे दुराचार, दुःख, गिरावट और वास्तविक दासताको स्थायी बनाते हैं।

(१२) जब मैंने चिकित्सा-शास्त्रकी शिक्षा लेनेकी सोची थी तब मैं बिल्कुल बहक ही गया था। अस्पतालकी घृणित प्रक्रियाओंमें भाग लेना मेरे लिए हर तरहसे एक पापपूर्ण कृत्य होगा।

अगर यौन रोगोंके लिए, या क्षय-रोगियोंके लिए भी, अस्पताल न होते तो हमारे बीच क्षय रोग कम होता और यौन पाप भी इतने न होते ।

(१३) भारतकी मुक्ति इसी बात है कि उसने पिछले पचास वर्षोंमें जो कुछ सीखा है, उसे भूल जाये।

रेल, तार, अस्पताल, वकील, डॉक्टर आदि—सबको जाना होगा; और तथाकथित उच्च वर्गोंके लोगोंको इस बोधके साथ कि किसानका सादा जीवन ही सच्चा सुख देनेवाला है, अन्तरात्माको साक्षी बनाकर, धर्म मानकर और मनको वशमें करके वह जीवन बिताना सीखना होगा।

(१४) भारतीयोंको मिलके कपड़े नहीं पहनने चाहिए, चाहे वे यूरोपीय मिलोंमें तैयार हुए हों या भारतीय मिलोंमें।

(१५) इंग्लैंड इसमें भारतका सहायक हो सकता है, और तभी वह भारतपर अपने अधिकारका औचित्य सिद्ध कर आयेगा। आज इंग्लैंडमें भी ऐसा सोचनेवाले बहुत लोग दिखाई देते हैं।

(१६) पुराने ऋषियोंमें सच्चा ज्ञान था। तभी तो उन्होंने समाजकी व्यवस्था ऐसी की थी कि लोगोंकी भौतिक स्थिति मर्यादित हो जाये। शायद पाँच हजार साल पुराना आदिम हल आज भी किसानके लिए उपयुक्त हल है। हमारी मुक्ति उसीसे होगी। ऐसी हालतोंमें लोग ज्यादा जीते हैं या, ज्यादा शान्तिसे रहते हैं। उसकी तुलनामें आधुनिक उद्योगवादको अपनानेके बाद यूरोपके लोगोंको उतनी शान्ति नहीं मिलती है। मुझे लगता है कि प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति चाहे तो इस सत्यको सीख सकता है और उसके अनुसार आचरण कर सकता है; प्रत्येक अंग्रेज भी, अवश्य ही ऐसा कर सकता है।

लिखनेके लिए बातें बहुत हैं। आज आपको उतना नहीं लिख सकता। लेकिन ऊपर दी गई सामग्री विचारके लिए काफी है। जब आप यह देखें कि मैं गलत कहता हूँ, तो मुझे रोक सकते हैं।

आप यह भी देखेंगे कि मैं उपर्युक्त निष्कर्षोपर, जो करीब-करीब निश्चित हैं, अनाक्रामक प्रतिरोधकी सच्ची भावनासे ही पहुँचा हूँ। अनाक्रामक प्रतिरोधीके रूपमें मुझे इस बातकी कोई