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३०८. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१६]

[ अक्तूबर १५, १९०९]

पिछल हफ्ता बुरा बीता है। पहले तो 'टाइम्स' में इस आशयका तार देखने में आया कि समझौतेकी बात बिल्कुल गलत है। [तारमें आगे कहा गया है,] श्री स्मट्सने लॉर्ड क्रू से बातचीत की थी; किन्तु सरकारका विचार भारतीयोंकी माँग मंजूर करनेका नहीं है।

एक दूसरी खानगी खबर भी तारसे आई है, जिसमें कहा गया है कि श्री स्मट्स लॉर्ड क्रू के जवाबकी राह देख रहे हैं।

लॉर्ड क्रू का जवाब आज (शुक्रवारको[१]) मिला है। वे उसमें लिखते हैं कि जनरल स्मट्स जो-कुछ देना चाहते हैं, वह अपने पिछले विचारके अनुसार ही देना चाहते हैं, तथापि वे कानून रद कर देंगे और [प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनमें] ऐसा परिवर्तन करा देंगे जिससे उनकी पसन्दके कुछ शिक्षित भारतीय [प्रति वर्ष] स्थायी रूपसे आ सकें। इसके अलावा लॉर्ड क्रू लिखते हैं, यहाँ कोई खुला आन्दोलन किया जाये या नहीं, इस सम्बन्धमें हमें ही सोचना है। साथ ही इसपर भी विचार कर लेना है कि यहाँ किये गये आन्दोलनका जनरल स्मट्सपर क्या असर होगा!

यह यहाँकी स्थिति है। अब विचार करनेकी बात यह है कि क्या करना ठीक होगा। यदि श्री स्मट्स सचमुच हमारी माँगें मंजूर करना चाहते हों तो यहाँ खुली लड़ाई लड़ने से उनकी स्थिति विषम होती है। यदि उनका विचार ऐसा न हो तो यहाँ खुला आन्दोलन करना ठीक ही होगा।

बिल्कुल निश्चित सम्मति दे देना सरल नहीं है। सत्याग्रहकी नीतिके अनुसार [परिणाम-के प्रति] उदासीन रहा जा सकता है। किन्तु जहाँ दुर्बल और सबल सभी तरहके लोग मौजूद हों, वहाँ विचार करना जरूरी है। अब यह देखना है कि लॉर्ड ऍम्टहिल आदि महानुभाव क्या कहते हैं। यह पत्र छपनेसे पहले ही यहाँ कार्रवाई शुरू कर दी जायेगी। सवाल भारतका है। किन्तु मुझे तो लगता है कि लड़ाई जैसे-जैसे आगे बढ़ती जायेगी वैसे-वैसे सही रास्ता सूझता जायेगा। इस बीच सबको धीरज और साहसकी जरूरत होगी और भारी दुःख सहन करने पड़ेंगे।

रूसके एक महापुरुष काउंट टॉल्स्टॉय हैं। उनको मैंने इस लड़ाईके सम्बन्धमें और उससे सम्बन्धित अन्य विषयोंपर पत्र लिखा था।[२] उन्होंने उस पत्रका जो उत्तर दिया है, उसका एक अनुच्छेद नीचे दे रहा हूँ[३]:

मुझे आपका अत्यन्त मनोरंजक पत्र मिला। उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। खुदा हमारे ट्रान्सवालवासी भाइयों और साथियोंकी मदद करे। नर्म दिलके लोगों और

  1. अक्तूबर १५, देखिए "पत्र: उपनिवेश उपमन्त्रीको", पृष्ठ ४८६ ।
  2. देखिए "पत्र: टॉल्स्टॉयको", पृष्ठ ४४३-४५।
  3. टॉल्स्टॉयके हस्ताक्षरयुक्त मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवादके लिए देखिए परिशिष्ट २७।