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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कमिश्नरके[१] सामने पेश किये गये प्रमाणोंको पढ़ा है, कमिश्नरकी जाँचके निष्कर्षोको अस्वीकार किया है; और श्री बेन्सनने,[२] जिन्होंने जाँचमें ब्रिटिश भारतीयोंका प्रतिनिधित्व किया था, ट्रान्सवालके अखबारोंमें तीन कालमका एक पत्र छपवाकर जाँचके निष्कर्षोंकी कमजोरी बताई है। उनके उस पत्रका उत्तर अभीतक नहीं दिया गया है। और आखिर मेजर डिक्सनके निष्कर्ष हैं क्या? मृत व्यक्तिके पास दो कम्बल थे या नहीं, इस प्रश्नके सम्बन्धमें तो उन्होंने कोई निर्णय दिया ही नहीं। उन्होंने यह स्वीकार किया है कि मृत व्यक्तिको चावल नहीं दिया जाता था। आपके संवाददाताने यह कहकर बड़ी उदारता प्रकट की है कि यदि चावल नहीं दिया जाता था तो पानी तो निश्चय ही दिया जाता था और वह भी काफी। लेकिन मेरे देशवासी यह मानते हैं कि पानी काफी दिया जानेपर भी वह चावलका स्थान नहीं ले सकता। कमिश्नरने यह निष्कर्ष भी नहीं निकाला है कि बेचारा नागप्पन, जैसा आपके संवाददाताने कहा है, जेलमें अधिक स्वस्थ था। कोई साधारण व्यक्ति भी, और मेरा तो खयाल है कि कोई चिकित्सक भी, यह मानेगा कि यदि कोई अन्य बात न हो तो आंशिक भुखमरी और अपर्याप्त वस्त्र ही ट्रान्सवालके इस ऊँचे पठारकी इस कड़ी सर्दीमें निमोनियाको जन्म देनेके लिए काफी हैं, जिससे यह बेचारा अनाक्रामक प्रतिरोधी जेलसे छूटनेपर छ: दिनके भीतर ही मर गया। डॉ॰ गॉडफ्रेका[३] खयाल बेशक यही था।

आपके संवाददाताके इस कथनके बावजूद ट्रान्सवालके और, वस्तुत: समस्त दक्षिण आफ्रिकाके, भारतीयों और कितने ही अन्य निष्पक्ष यूरोपीयोंका[४] यह खयाल बना ही रहेगा कि नागप्पन कर्तव्यकी वेदीपर बलि हो गया, और उसकी मृत्युका खयाल उन लोगोंकी अन्तरात्माको सालता रहेगा जिनकी अधीनतामें वह अपनी कैदकी सजा काट रहा था।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१०-१९०९
 
  1. मेजर एफ॰ जे॰ डिक्सन; इन्होंने १९ जुलाईको, यॉक्साई रिवर प्रिज़न्स कैम्पके मामले की खुली जाँचकी थी। इस सिलसिले में जो गवाही दी गई थी उसकी रिपोर्ट २४-७-१९०९ के इंडियन ओपिनियनमें छपी थी, और कमिश्नरके निष्कर्ष १४-८-१९०९ के अंकमें।
  2. एलेक्स एस० बेन्सन द्वारा भेजा गया मुकदमेक। आँखों देखा हाल २४-७-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में छपा था। १४ अगस्तको उन्होंने ट्रान्सवाल लीडरको एक पत्र लिखा था, जिसमें जोहानिसबर्ग के कुछ अखबारों द्वारा कमिश्नरके निर्णयको जैसाका-तैसा स्वीकार करनेकी आलोचना की गई थी। यह पत्र भी २१-८-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में छापा गया था।
  3. डॉ॰ विलियम गॉडफे नागप्पनकी अंतिम बीमारीके समय उसके चिकित्सक थे। उन्होंने बादमें यह प्रमाणपत्र भी दिया था कि नागप्पनकी मृत्यु निमोनियासे हुई और "अगर जो कुछ कहा गया है वह सत्य है तो जेल अधिकारियोंका बरताव उसकी हालत बिगाड़नेके लिए उत्तरदायी है।"
  4. ऐसा करनेवालोंमें रेवरेंड जे॰ जे॰ डोक और एडवर्ड डैलो भी थे। ट्रान्सवालके अखबारोंको लिखे गये उनके पत्र २१-८-१९०९ के इंडियन ओपिनियनमें भी उद्धृत किये गये थे।