पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२२०. लन्दन

[अक्तूबर २३, १९०९के पूर्व]

नेटालका शिष्टमण्डल

श्री अब्दुल कादिर उसी जहाजसे रवाना होनेवाले हैं[१] जिससे यह पत्र जायेगा। इसलिए अब केवल श्री आंगलिया रह गये हैं। वे श्री हाजी हबीबके साथ पेरिससे इंग्लैंड वापस आ गये हैं।

अली इमाम

श्री अली इमामने रविवारको भारतीय समाज संघ (इंडियन सोशल यूनियन) में भाषण दिया था। इसमें उन्होंने कहा कि हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता होनेकी आवश्यकता है। दोनों कौमोंमें फूट कतई नहीं होनी चाहिए। मुसलमानों और हिन्दुओं, दोनोंकी मिट्टी भारतमें ही मिलनी है। उन्हें चाहिए कि वे एक-दूसरेके प्रति उदारता बरतें और छोटी-मोटी बातोंका खयाल न करें। भारतको स्वराज्य मिलना ही चाहिए। वह अंग्रेजों [की सद्भावना] से ही मिल सकता है। उनके भाषणका आशय यही था। वे बुधवारको भारतके लिए रवाना हो गये। उनकी विदाईके वक्त श्री परीख, श्री बनर्जी, डॉक्टर अब्दुल मजीद और श्री बोस आदि लगभग पन्द्रह भारतीय मौजूद थे। श्री अली इमामने जाते-जाते भी कहा कि वे दक्षिण आफ्रिकाके मामले में पूरा प्रयत्न करेंगे। स्टेशनपर श्री पोलककी बहन भी मौजूद थीं। श्री अली इमामने श्री पोलकको पूरी सहायता देनेका वचन दिया। उनके साथ श्री अब्दुल अजीज पेशावरी भी गये हैं।

छोटालाल पारेख


श्री छोटालाल ईश्वरलाल पारेख यहाँके प्रथम भारतीय बैंकके प्रथम मैनेजर हैं। इस बैंककी स्थापना स्वदेशी आन्दोलनके बाद की गई थी। इसमें ज्यादातर पूंजी भारतीयोंकी ही लगी है। श्री पारेखने बैंककी नींव मजबूत कर दी है। इस खयालसे और स्वदेशी आन्दोलनको उत्तेजन देनेके खयालसे उनकी विदाईके समय एक समारोह किया गया था। श्री पारेख दो वर्षतक यहाँ काम करनेके बाद अब बम्बई जा रहे हैं। समारोहमें पचासके करीब लोग मौजूद थे। सर मंचरजी अध्यक्ष थे। चाय आदिसे सबका सत्कार करनेके बाद सर मंचरजीने भाषण दिया। उसमें उन्होंने बैंकका और श्री पारेखकी समझदारीका उल्लेख किया। इसके बाद उनको एक चाँदीका टी-सेट भेंट किया गया। श्री पारेखने आभार मानते हुए कहा कि बैंकका व्यवसाय भारतमें नया नहीं है। उनको अपने अनुभवसे ऐसा लगता है कि यह बैंक भविष्यमें उन्नति करेगा। इंग्लैंडमें उनके कार्यमें कोई कठिनाई नहीं आई।

डॉक्टर अब्दुल मजीद और श्री गांधीने भी कुछ शब्द कहे।

  1. अक्तूबर २३ को; देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ४९४।