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लन्दन

श्रीमती रिच

मुझे यह लिखते हुए दुःख होता है कि श्रीमती रिचका रोग अभीतक गया नहीं है। उनको फिर ऑपरेशन करवाना पड़ेगा। इस बारका ऑपरेशन कुछ खतरनाक होगा। लेकिन श्रीमती रिचमें हिम्मत खूब है। श्री रिच तो खर्चके बोझसे पिस ही गये हैं।

स्त्रियोंके मताधिकारके लिए आन्दोलन करनेवाली महिलाएँ

मताधिकार आन्दोलन करनेवाली स्त्रियाँ पूरी दौड़-धूप कर रही हैं। यहाँके अखबारों में उनकी चर्चा रोज होती है। श्री चर्चिलने उन्हें सलाह दी थी कि वे लोगोंपर आक्रमण करना बन्द कर दें। इससे उनका विरोध बढ़ गया है। श्री चचिलको एक सभामें भाषण देना था। स्त्रियोंने उस सभाको भंग करनेका प्रयत्न किया। वे खुल्लम-खुल्ला कहती हैं कि बगावत किये बिना उन्हें न्याय न मिलेगा। इसलिए उन्होंने आक्रमण जारी रखने, मन्त्रियोंकी सभाओंको भंग करने और उन्हें दूसरी तरहसे भी परेशान करनेका निश्चय किया है। उनका नेतृत्व करनेवाली स्त्रियाँ बहुत कष्ट उठा रही हैं। वे शारीरिक कष्टसे तनिक भी नहीं डरतीं। उनकी मुखिया श्रीमती पेंकर्स्ट स्त्रियोंमें आन्दोलनकी भावना जागृत करनेके लिए अमेरिका गई हैं।

शरीर-बलकी व्यर्थता

स्पेनमें फेरर नामका एक प्रख्यात व्यक्ति था। उसका काम लोगोंमें शिक्षा-प्रचार करना था। इसके अलावा वह रोमन कैथॉलिक धर्मावलम्बियोंका बहुत बड़ा विरोधी था। वह खुद नास्तिक था और राज्यसत्ताका शत्रु था। ऐसा मालूम होता है कि कुछ समय पूर्व स्पेनके एक भागमें जो विद्रोह हुआ था, उसको उसीने भड़काया था और उसमें उसका हाथ था। इससे उसके ऊपर फौजी अदालतमें मुकदमा चलाया गया और उसको गोलीसे उड़ा देनेकी आज्ञा दी गई। उसके बाद उस आज्ञापर तुरन्त अमल किया गया। इस कारण यूरोपके बहुत-से गोरे उत्तेजित हो गये हैं। उनका कहना है कि फेररपर कानूनके मुताबिक मुकदमा नहीं चलाया गया और उसके साथ अन्याय किया गया। विद्रोहमें उसका हाथ था, यह सिद्ध नहीं हुआ। बहुत से स्थानोंमें सभाएँ करके स्पेन-सरकारकी निन्दा की गई। पेरिसके कुछ लोग तो इतने उत्तेजित हो गये थे कि कोई भारी फसाद हो जानेकी आशंका उत्पन्न हो गई थी। एक सिपाहीकी तो जान भी चली गई।

यहाँ भी रविवारको एक खुले मैदानमें बहुत बड़ी सभा की गई थी। लोगोंने स्पेनके दूतावासपर धावा बोल दिया था; लेकिन पुलिसका नियन्त्रण पर्याप्त था, इसलिए दूतावासकी इमारत बच गई।

कुछ यूरोपीयोंका कहना है कि यूरोपके दूसरे देशोंके लोगोंको स्पेनके आन्तरिक मामलोंमें इस तरह दखल न देना चाहिए। उनको ऐसा करनेका हक नहीं है।

मुझे तो इससे यह खयाल होता है कि अब फेररके भाई-बँद उसके गोलीसे उड़ा दिये जानेका बदला लेना चाहते हैं। इससे आपसी घृणा और बैर बढ़ेगा। इस समय ऐसी अफवाह है कि लोग स्पेनके राजाका खून कर देंगे। ऐसा हो तो भी क्या होगा? इससे किसीका लाभ तो होता नहीं दीखता। इसमें तो शक नहीं कि फेरर खुद शरीर-बलपर जोर देता था। उसने अपने प्राण गँवाये, इसलिए यूरोपके क्रान्तिकारी बिना सोचे-विचारे उत्तेजित हो गये हैं। इसमें न्यायकी बात तो है ही नहीं। बस "मारो, मारो"—यही

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