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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा जा रहा है। अगर यही परिस्थिति रही तो यूरोपमें किसीका भी जीवन सुरक्षित न रहेगा। बादशाह और बड़े अधिकारी तो आज भी सुरक्षित नहीं हैं। वे भी तो शरीर बलके पुजारी हैं। इसलिए दिन-प्रति-दिन यह आँधी बढ़ेगी। कुछ भारतीय भारतमें भी यही साधन अपनाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि उन्हें फेररके उदाहरणसे शिक्षा लेनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-११-१९०९

३२१. लन्दन

[ अक्तूबर २४, १९०९ के बाद ]

विजयादशमी

इंग्लैंडमें भारतीय जातियाँ अपने-अपने त्यौहार मनायें, यह कुछ आश्चर्यकी बात है। ठीक देखें तो इसमें आश्चर्य कुछ नहीं है, लेकिन हम ऐसी हीन अवस्थामें पहुँच गये हैं कि हमें इस देशमें अपने त्यौहारोंका भान नहीं रहता। जबतक हमारीं यह स्थिति है तबतक यह कैसे कहा जा सकता है कि हम एक राष्ट्र होने योग्य हैं, अगर हम इस स्थितिके लिए शासकोंकी निन्दा करें तो वह भी उचित न होगा। इसमें तो स्पष्टतः हमारा ही दोष है। इसलिए यह अच्छी बात है कि अब इंग्लैंड में विभिन्न [भारतीय] जातियाँ अपने-अपने त्यौहार मनाने लगी हैं।

इस दिशामें पहल तो पारसियोंने की है। वे पटेटीका त्यौहार कई बरससे मना रहे हैं। मुसलमान भी ईद मनाते हैं। दो बरससे हिन्दू अपने उत्सव मनाने लगे हैं। इन उत्सवोंमें सभी जाँतियाँ थोड़ा-बहुत हिस्सा लेती है। ऐसा ही होना चाहिए। हम सबको एक-दूसरेके त्यौहारोंकी जानकारी रखना जरूरी ही है।

विजयादशमी के दिन[१] यहाँ हिन्दुओंने एक भोज दिया था। उसमें सब टिकटसे आये थे। जो हिन्दू न थे उन्हें [अतिथि-रूपमें] निमन्त्रित किया गया था। बाकी लोगोंने ४ शिलिंग प्रति टिकट दिये थे। भोजन बनानेवाले सभी भारतीय चिकित्सा शास्त्र या कानूनके विद्यार्थी थे और उन्होंने स्वेच्छासे खाना बनाया। उनमें एक भारतीय बहुत प्रतिभाशाली था। उसने बहुत कष्ट सहकर कानूनके अध्ययनका अवसर प्राप्त किया है। परोसनेवाले भी यही लोग थे। यह नहीं कहा जा सकता कि सब व्यवस्था ठीक थी। निश्चित समयसे कुछ विलम्ब हो गया था। परोसनेवालोंको भी परोसनेका काम ठीक-ठीक नहीं आता था। फिर भी नया काम था, इस खयालसे यही कहा जा सकता है कि सब काम ठीक तरह पूरा गया।

इस समारोहमें श्री हुसेन दाउदने जेलकी कई कविताएँ गाकर सुनाईं। श्री गांधी को अध्यक्ष पद दिया गया था। विजयादशमी राम-रावणके युद्धकी याद दिलाती है। श्री गांधीने अपने भाषण में कहा कि ऐतिहासिक पुरुष के रूप में रामचन्द्रजीको प्रत्येक भारतीय सम्मान दे सकता है। जिस देशमें श्री रामचन्द्र सरीखे पुरुष हो गये हैं उस देशपर हिन्दुओं, मुसलमानों और पारसियों—सभीको गर्व करना चाहिए। श्री रामचन्द्रजी महान भारतीय हो गये हैं, इस

  1. अक्तूबर २४ को।