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पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

दृष्टिसे वे प्रत्येक भारतीयके लिए माननीय है। हिन्दुओंके लिए तो वे देवता-रूप हैं। अगर, रामचन्द्रजी, सीताजी, लक्ष्मणजी और भरतजी-जैसे लोग भारतमें फिर पैदा हों तो भारत ही शीघ्र एक सुखी देश बन जाये। पहले तो यह याद रखना चाहिए कि रामचन्द्रजीने देशसेवाके योग्य बननेसे पूर्व १२ बरस[१] वनवास भोगा। सीताजीने बहुत दुःख सहन किया और लक्ष्मणजीने इतने सालतक नींद त्यागी और ब्रह्मचर्यका पालन किया। जब भारतीय ऐसा जीवन बितायेंगे तब वे स्वतन्त्र ही माने जायेंगे। इससे भिन्न मार्ग अपनाने से भारत सुखी न होगा।

श्री हाजी हबीबने भारतके लिए मंगल-कामना की। श्री चट्टोपाध्यायने उनका समर्थन किया। श्री सावरकरने रामायणकी महानतापर जोशीला भाषण दिया। उन्होंने सभी भारतीयोंसे इस बातपर विचार करनेका अनुरोध किया कि विजयादशमीसे पहले नवरात्रिके व्रत (रोजे) आते हैं। इस समारोहमें लगभग सत्तर भारतीय उपस्थित थे।

लालाजीका मुकदमा

स्थानीय 'डेली एक्सप्रेस' पत्रमें लाला लाजपतरायके विरुद्ध कुछ आरोप छापे गये थे। इसपर लालाजीने पत्रपर मानहानिका दावा दायर किया। इस मुकदमेमें लालाजीको ५० पौंड हर्जाना और खर्च दिलाया गया है। इस मामलेमें न्यायाधीशने जो मत व्यक्त किया, उससे प्रकट होता है कि जब राजनीतिक मामलोंमें मुकदमा चलाया जाता है तब अदालतसे न्याय मिलना अत्यन्त कठिन हो जाता है। न्यायाधीशने तो यही मत व्यक्त किया कि लॉर्ड मॉर्ले-जैसे व्यक्तिने जब लालाजीको निर्वासित किया है तब कुछ तो कारण होगा ही। सच कहा जाये तो टीका यह बिल्कुल अनुचित थी। इसके अलावा न्यायाधीशके सामने इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण भी नहीं थी। फिर भी न्यायाधीशने यह मत प्रकट किया, इसका उद्देश्य तो केवल यही था कि जैसे-हो-वैसे लालाजीको पंचोंकी नजरोंमें गिराया जाये और उनके (ज्यूरीके) मनमें भ्रम उत्पन्न किया जाये।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-११-१९०९

३२२. पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

[लन्दन]
अक्तूबर २६, १९०९

महोदय,

नीचेका तार जोहानिसबर्गसे अभी-अभी मिला है:

प्रिटोरियाके भारतीयोंपर १८९९ के नगर-विनियम के खण्ड ३९ के अनुसार नगरमें रहनेके आरोप में मुकदमा। पहली पेशी एक नवम्बरको। सोराबजी, मेढ वापस आये; छः महीनेकी सजा।
  1. यह छपाईकी भूल हो सकती है। वनवास १४ वर्षका था।