शिक्षित भारतीयोंका दर्जा
३०. कानूनकी किताबसे यदि पुराना कानून हटा दिया जाये तो ऐसा लगता है कि, जहाँतक प्रवासका सम्बन्ध है, ब्रिटिश भारतीयोंको सम्राट् के अन्य प्रजाजनोंके समान दर्जा देने में कोई बाधा नहीं रहेगी ।
३१. सन् १९०७ के प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम (इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट) १५ में सामान्य शैक्षणिक कसौटीका विधान है । और उसके अन्तर्गत जो एशियाई शैक्षणिक कसौटीमें खरा उतरता है उसके उपनिवेशमें प्रवेश करनेपर अन्यथा कोई रोक नहीं रहती । तब वह एशियाई कानूनके अनुसार पंजीयनका भागी हो जाता है और यदि वह उसकी शर्तें पूरी नहीं करे तो भी वह निषिद्ध प्रवासी नहीं होता, अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) एशियाई हो जाता है । इस प्रकार श्री सोराबजी शापुरजी प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम के अन्तर्गत उपनिवेशमें आये । उनको बिना रोक-टोकके यहाँ आने दिया गया । सात दिन उपनिवेशमें रहनेके बाद उनपर १९०७ के कानून २ के अन्तर्गत अपंजीकृत होनेके आरोप में मुकदमा चलाया गया । श्री सोराबजीने स्वेच्छया पंजीयन (वॉलंटरी रजिस्ट्रेशन) के लिए प्रार्थनापत्र दिया था । वह अस्वीकार कर दिया गया था । वे १९०७ के अधिनियम २ को माननेके लिए तैयार न थे । चार्ल्सटाउनके टाउन क्लार्क तथा उस नगरके अन्य अधिकारियोंके बहुत ही अच्छे प्रमाणपत्र उनके पास थे । फोक्सरस्टके न्यायाधीशने उनके प्रार्थनापत्रपर सिफारिश की थी । वे सूरतके हाई स्कूल में सातवें दर्जे तक पढ़े हैं और चार्ल्सटाउनकी अदालत में उन्होंने अक्सर दुभाषियेका काम किया है । एशियाई कानूनके अन्तर्गत अभियोग चलाये जानेपर उन्हें उपनिवेशसे जानेका नोटिस दिया गया । ब्रिटिश प्रजाजनकी हैसियतसे उन्होंने उस नोटिसको मानने से इनकार कर दिया । इसलिए उनपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें एक महीनेकी सख्त कैदकी सजा दी गई, जिसके लिए जुर्मानेका विकल्प न था ।' श्री सोराबजीने अपनी सजा पूरी की और मीयादके अन्तिम दिन वे गोपनीय ढंगसे निर्वासित कर दिये गये ।
३२. प्रार्थी संघ सादर और नम्रतापूर्वक निवेदन करता है कि किसी भी ब्रिटिश उपनिवेशमें निर्दोष ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ इस ढंगका बरताव किये जानेका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है ।
३३. श्री सोराबजीके मामले से यह जाहिर होता है कि प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम (इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट) से रंगके कारण कोई रोक नहीं लगती । ऐसा लगता है कि पिछली २२ जुलाईको ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालय में ताज बनाम लल्लूका जो मुकदमा चला था उससे भी उपर्युक्त दृष्टिकोण सत्य सिद्ध होता है ।
३४. वह एशियाई कानून हो है जिसका उद्देश्य जाहिरमें केवल उनकी शिनाख्त करना है, जिनकी अन्यथा आसानी से शिनाख्त नहीं की जा सकती, किन्तु जो शिक्षित भारतीयोंके आड़े आता है ।
१. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३३७-४० ।
२. वही, पृष्ठ ३४७-५१ ।
३. वही, पृष्ठ ३७०-७१ ।
४. वही, पृष्ठ ३९१-९२ ।
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