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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा ही होता है। तलवारधारी प्रायः तलवारसे ही मरता है, जैसे तैराक प्रायः डूबकर मरता है। रिवाल्वर चलानेवालेने साफ-साफ कहा कि कोरियामें जापानका शासन उससे सहन नहीं हुआ, इसलिए उसने ईटोको मारा है। कहा जाता है कि जापानने कोरियापर अपनी सत्ता जमानेके लिए करीब १२,००० कोरियाइयोंका वध किया है। इतिहास बताता है कि सत्ता बुरी वस्तु है और दूसरे देशपर हाथ डालकर सुखसे बैठना सम्भव नहीं है। हमारे कुछ नवयुवक मानते हैं कि [कुछ लोगोंका] खून करके अंग्रेजोंको भारतसे निकाला जा सकता है। यह सम्भव हो, तो भी व्यर्थ है। जापानकी कुछ बातें प्रशंसनीय हैं; परन्तु जापानने जो पश्चिमी प्रथाओंको अपनाया है वह किसी भी प्रकार प्रशंसनीय नहीं माना जायेगा।

तब ईटोको वीर क्यों माना? यह बात अलग है। ईटोमें बचपनसे ही स्वदेशाभिमान था। उनका जन्म १८४१ में हुआ था। उन्होंने जबसे होश सँभाला तभीसे जापानके उत्थानका खयाल रखा। उसको अमलमें लानेके लिए उन्होंने बहुत कष्ट सहे। रूसके साथ जो युद्ध हुआ उसमें उन्होंने बहुत वीरता दिखाई। इस प्रकार युद्धमें, गणितमें, शिक्षण कार्यमें और शासन-व्यवस्थामें—अर्थात् सभी बातोंमें वे पूर्ण दक्ष थे। इसलिए वे वीर तो माने ही जायेंगे। उन्होंने कोरियाको जीतनेमें अपनी वीरताका दुरुपयोग किया। परन्तु जो लोग पश्चिमी सभ्यतापर मोहित होते हैं वे ऐसा किये बिना रह नहीं सकते। शस्त्रोंसे जापानका अस्तित्व रखना, उसकी रक्षा करना और उसको उन्नत बनाना हो तो उसके लिए अपने इर्द-गिर्दके देशोंको अधीन करना अनिवार्य ही है। इससे सार यह निकला कि जो राष्ट्रका सच्चा हिताकांक्षी है वह तो उसे सत्याग्रहके रास्तेपर ही ले जायेगा।

भारतकी जागृतिपर एक गोरेके विचार

श्री जी॰ के॰ चेस्टरटन यहाँके महान् लेखक हैं। वे उदार दिलके अंग्रेज हैं। उनके लेखोंको लाखों लोग चावसे पढ़ते हैं। उनके लिखनेकी खूबी ही ऐसी है। १८ सितम्बरके 'इलस्ट्रेटेड लन्दन न्यूज़' में उन्होंने भारतकी जागृतिके सम्बन्धमें एक लेख लिखा है। वह पढ़ने और समझने लायक है। मेरा खयाल है, उन्होंने बहुत उचित बात लिखी है, मैं लेखके ज्ञातव्य अंशोंका नीचे देता हूँ।

भारतके लिए स्वराज्यकी बात करनेवाले भारतीय युवक जब यह बात करते हैं तब मुझे ऐसा भासित होता है कि वे जो कहते हैं उसे समझते नहीं हैं। जो स्वराज्य माँगते हैं वे अच्छे लोग हैं, यह मैं स्वीकार करता हूँ। देशप्रेमसे प्रेरित प्रायः सभी लोग अच्छे होते हैं। हमारे अफसर प्रायः अज्ञानी और अत्याचारी होते हैं, इसमें मुझे सन्देह नहीं है। ऐसे अफसर प्रायः अज्ञानी और अत्याचारी होते ही हैं; परन्तु जब मैं स्वराज्य मांगनेवालोंके अखबारोंको और उनके विचारोंको देखता हूँ तब मैं ऊब जाता हूँ और मुझे उनके सम्बन्धमें सन्देह होता है। भारतीय स्वराज्य माँगनेवाले जो-कुछ माँगते हैं वह न भारतीय है और न स्वराज्य ही है। वे हर्बर्ट स्पेंसरकी[१] और ऐसी ही दूसरी बातें करते हैं। यदि वे हर्बर्ट स्पेंसरके विचारोंसे नहीं बच सकते तो भारतीय स्वराज्य किसे कहा जाये? बुद्धका तत्त्वज्ञान मुझे अधिक प्रिय नहीं है, परन्तु उनकी शिक्षाएँ स्पेंसरकी शिक्षाओंके समान खोखली नहीं हैं। बुद्धकी शिक्षाओंमें कुछ ऊँचे हेतु हैं।
  1. (१८२०-१९०३); अंग्रेज दार्शनिक; प्रिंसिपल्स ऑफ़ साइकॉलॉजी, सिंथेटिक फिलॉसफ़ी और प्रिंसिप्लस ऑफ़ सोशियॉलॉजीके लेखक।