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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
यदि हमारी पद्धति अच्छी है, ऐसा आप मानते हैं तो याद रखें कि वह हमारी खोजी हुई है, हमने उसका अभ्यास किया है और कोई व्यक्ति महात्मा है या नहीं, यह हम जान सकते हैं। यदि आपको हमारे विशेष अधिकार चाहिए तो आपको हमारे विशेष नियमोंका पालन करना होगा ओर हमने जो मानदण्ड निश्चत किया है, उसपर खरा उतरना होगा। तभी हम आपको वह चीज दे सकेंगे जिसकी आप माँग कर रहे हैं।"
मैं इस प्रकार लिखता हूँ इससे कोई ऐसा खयाल करेगा कि मैं भारतको स्वराज्य देनेके विरुद्ध हूँ। परन्तु यह गलत माना जायेगा। मैं तो केवल आसपासका विचार करता हूँ। और जब दो सम्पूर्ण सभ्यताओंके बीच संघर्ष उत्पन्न हो, तब आसपासका विचार करना आवश्यक है। फिर मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि स्वाभाविक अधिकार होते हैं। लोग अपने विचार प्रकट करें, अपनी पद्धतिके अनुसार आचरण करना चाहें, यह स्वाभाविक है। भारतवासियोंको भारतीय बनने और रहनेका अधिकार है। परन्तु हर्बर्ट स्पेंसर कोई भारतीय नहीं है। उसकी शिक्षा भारतीय नहीं है। शिक्षा-शास्त्र आदिकी ढोंग-भरी बातें भारतीय नहीं हैं। मैं चाहता हूँ कि अंग्रेजोंमें ऐसा ढोंग न हो। परन्तु हमारी पहली कठिनाई यह है कि भारतके लिए स्वराज्य माँगनेवाला भारतीय ऐसा नहीं है जो भारतीय जातिके लिए शोभास्पद हो।

श्री चेस्टरटनने ऊपर जो विचार व्यक्त किये हैं, उनको सम्मुख रखकर प्रत्येक भारतीयको सोचना है कि भारतको क्या माँगना उचित है। भारतकी जनता किस प्रकार सुखी होगी? हम भारतकी जनताके नामपर अपने स्वार्थकी पूर्ति कराना तो नहीं चाहते? भारतकी जनताने जिस वस्तुकी सहस्त्रों वर्षसे बड़े यत्नसे रक्षा की है, उसको हम एक क्षणमें उखाड़कर फेंक देना तो नहीं चाहते? श्री चेस्टरटनके लेखोंको पढ़कर मेरे मनमें तो ये सब विचार उत्पन्न हुए हैं, इसलिए इनको 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंके सम्मुख रखता हूँ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१०

३२५. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अक्तूबर २८, १९०९

श्रीमान,

मद्रास प्रेसीडेन्सीमें जगह-जगह जो सभाएँ हुई हैं,[१] उनके बारेमें लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको एक पत्र भेजा गया है। उसकी एक नकल मैं इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ।

मैं यह भी कह दूँ कि जोहानिसबर्गसे जो तार मिले हैं, उनमें कहा गया है कि ट्रान्सवालमें अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके विरुद्ध फिर सरगर्म कार्रवाइयाँ शुरू कर दी गई हैं। इक्कीस व्यक्तियों को गिरफ्तारकर तीन-तीन महीनेकी सजायें दे दी गई हैं। इनमें ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन) के कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं। तीन पढ़े-लिखे

  1. देखिए पिछला शीर्षक।