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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
दिये गये हैं, वैसे ही भारतका काम समाप्त कर देनेके लिए भी दो महीने और लगा दिये जायें। उस दशामें पैसेका प्रश्न भी उठेगा और पैसा मेरे पास तार द्वारा भेजना होगा।

इसका कारण चाहे समिति द्वारा विशुद्ध सत्याग्रही दृष्टिकोण अपनाया जाना हो या धनाभाव हो, अथवा दोनों हों, लगता है कि परिस्थितिके देखते हुए हमें कमसे-कम वर्तमान समयमें भारत-यात्राका विचार छोड़ देना चाहिए। यह मामला श्री पोलकके तारसे और भी मुश्किल हो गया है। उन्होंने आज भारतसे नीचे लिखे अनुसार तार भेजा है:

बहुत जोर देकर आपको आनेकी सलाह देता हूँ ।

परन्तु कुल मिलाकर मुझे यह लगता है कि संघर्ष किसी भी मंजिलपर क्यों न हो, हम १३ नवम्बरको निश्चित रूपसे दक्षिण आफ्रिकाके लिए रवाना हो जायेंगे और ट्रान्सवालकी सीमापर गिरफ्तारीके लिए ललकारेंगे।

लॉर्ड क्रू का उत्तर अभीतक नहीं मिला। मैं नहीं जानता कि इसका क्या अर्थ है। परन्तु यदि वह इतनी देरसे आया कि यहाँ रहते हम उसपर सार्वजनिक रूपसे कार्यवाही न कर सकें तो मैं सोचता हूँ कि उस दशामें उसपर समितिको कार्रवाई करनी चाहिए।[१] श्री रिच इस विचारसे सहमत हैं।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१५०) से।

३२७. पत्र: एल्मर मॉडको

[लन्दन]
अक्तूबर २९, १९०९

प्रिय महोदय,

मैंने पिछले हफ्ते आपके कृपापूर्ण पत्रके उत्तरमें आपको एक पत्र[२] लिखा था। चूँकि मैं आपसे भेंटकी तारीख नियत की जानेकी प्रतीक्षा उत्सुकतासे कर रहा हूँ, इसलिए आपको फिर याद दिलाता हूँ। कहीं मेरा पत्र इधर-उधर तो नहीं चला गया?

मैं आपसे अनाक्रामक प्रतिरोध-सम्बन्धी मामलोंपर बातचीत करना चाहता हूँ। इनमें से एक मामला टॉल्स्टॉयके "एक हिन्दूके नाम लिखे पत्र"[३] के प्रकाशनसे सम्बन्धित है। मेरा खयाल है, पिछले महीने जब आप रूस गये थे तब आपने वह पत्र टॉल्स्टॉयके यहाँ देखा होगा। मैं इस पत्रको छापनेके लिए किसे भेजूँ, इस सम्बन्धमें आपकी सलाहकी कद्र करूँगा।

  1. इस पत्रको प्राप्ति-सूचना देते हुए लॉर्ड ऍम्टहिलने भी इस विचारसे अपनी सहमति प्रकट की।
  2. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  3. देखिए "पत्र: टॉल्स्टॉयको", पृष्ठ ४४३-४५ ।