ठीक लगे तो हमारे जानेके बाद प्रकाशित किया जाये और सम्भव हो तो कॉमन्स सभाके सदस्योंकी बैठक भी तभी की जाये।
भारतीयोंको पूरी खबर देना आवश्यक है, इस खयालसे भारतीयोंकी एक सभा शनिवारको होनेवाली है। इसमें मुझे भाषण देना है। दूसरी सभा मंगलवारको होगी। इसमें भारतीयोंको क्या करना चाहिए, यह बताना है। तीसरी सभा कैम्ब्रिजमें होगी। फिलहाल तो यही कार्यक्रम है।
किन्तु यह तो निश्चित समझ लेना चाहिए कि जबतक हम पूरा बल नहीं लगायेंगे तबतक कुछ न होगा। मुझे बार-बार यह लिखनेकी जरूरत मालूम होती है कि इसके सिवा कोई दूसरा बल नहीं है। इसीलिए मुझे खुशी हुई है कि श्री सोराबजी और श्री मेढ फिर लौट गये। मैं उनको बधाई देता हूँ। सब लोगोंको इन वीर भारतीयोंका अनुकरण करना चाहिए। दूसरी लड़ाईकी नींव श्री सोराबजीने थी। लगता है, उसका अन्त भी उन्हींके हाथों होगा। भविष्यमें जो भी हो, किन्तु भारतीयोंको समझ लेना चाहिए कि जहाँ जुल्मी लोग राज्य करते हैं वहाँ अच्छे लोगोंका घर जेलमें ही होना चाहिए।
सत्याग्रहियोंको सहायता
एक सज्जनने, जो अपना परिचय "एक भारतीय सेवक" के नामसे देना चाहते हैं, यह निश्चय किया है कि जबतक यह लड़ाई जारी रहेगी तबतक वे गरीबोंकी सहायताके लिए प्रति मास ५० रुपये देते रहेंगे। उन्होंने ३ पौंडका पहला चेक दे भी दिया है। अगर दूसरे भारतीय भी इसी तरह सहायता करें तो अच्छा होगा। मेरा खयाल है, वे अवश्य ही सहायता करेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २७-११-१९०९
३३०. पत्र: जी॰ ए॰ नटेसनको[१]
[लन्दन
अक्तूबर २९, १९०९ के बाद]
आपने मुझे तार दिया है कि कांग्रेसका जो अधिवेशन होनेवाला है उसके लिए मैं सन्देश भेजूँ। मैं कोई सन्देश भेजनेके योग्य भी हूँ, यह मैं नहीं जानता। लेकिन आपके तारके उत्तरमें कुछ कहूँ, यह सामान्य सौजन्यकी माँग है। फिलहाल मेरे दिमागमें उस संघर्षके अतिरिक्त, जो ट्रान्सवालमें चल रहा है, कोई दूसरी बात नहीं आ सकती। इस वक्त यही काम मेरे सामने है। चूँकि यह संघर्ष भारतके सम्मानकी रक्षाके लिए आरम्भ किया गया है, इसलिए मुझे आशा है कि मेरे सब देशवासी उद्देश्यकी दृष्टिसे इसे राष्ट्रीय
- ↑ यह इंडियन रिव्यूके दिसम्बरके अंकमें छपा था। उसी समय गांधीजीने इसकी एक नकल स्पष्ट ही इंडियन ओपिनियनको भी भेज दी थी जो, उसमें "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसको सन्देश," शीर्षकसे छपी थी; देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ५०७।