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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुमति दें कि मैंने ट्रान्सवालके मामलेको कांग्रेसके कार्यक्रम में सबसे पहली जगह देनेकी माँग करके अनुचित नहीं किया है। क्या मैं यह भी कह सकता हूँ कि ऊपर जिस अनाक्रामक प्रतिरोधकी व्याख्या की गई है, उसपर विचार करने और ध्यान जमानेसे शायद हमें अनाक्रामक प्रतिरोधके रूपमें उन बहुत-सी बुराइयोंकी अचूक औषधि मिल जाये जिनसे हम भारतके लोग पीड़ित हैं। यह सावधानीसे विचार करनेके योग्य है। मुझे विश्वास है कि यह हमारे लोगोंकी और हमारे देशकी प्रकृतिके अनुकूल एकमात्र शस्त्र सिद्ध होगा। हमारा देश प्राचीनतम धर्मोकी जन्म-भूमि है। उसे आधुनिक सभ्यतासे बहुत कम सीखना है, क्योंकि उसका आधार जवन्यतम हिंसा है, जो मनुष्यके समस्त दिव्य गुणोंके विपरीत है। यह सभ्यता आत्मविनाशके पथपर आँख मूँदकर दौड़ रही है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-११-१९०९

३३१. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको[१]

[लन्दन
अक्तूबर ३०, १९०९][२]

लॉर्ड महोदय,

पिछले कुछ दिनोंसे मेरी यह इच्छा रही है कि यहाँके थोड़े दिनोंके प्रवासमें मैंने अपने देशके लोगोंके राष्ट्रीय आन्दोलनका जो निरीक्षण किया है, उसके परिणामोंको आपके सामने रखूँ।

अगर आप इजाजत दें तो मैं कहना चाहता हूँ कि मैं आपकी निष्पक्षता, सचाई और ईमानदारीसे, जिनका आजकल हमारे बड़े-बड़े लोकसेवकोंमें इतना अभाव दिखाई देता है, बहुत प्रभावित हुआ हूँ। मैंने यह भी देखा है कि आप अपनी साम्राज्य-भावनाके कारण उन मामलोंको देखनेसे इनकार नहीं करते, जिनके पक्षमें स्पष्ट न्याय होता है। साथ ही आपको भारतसे सच्चा और बहुत ज्यादा प्यार है। इसके अलावा मैं उन भारतीय मामलोंसे सम्बन्धित, जिनका ट्रान्सवालके संघर्षपर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है, अपनी गतिविधियों के बारेमें आपसे कुछ भी छुपाना नहीं चाहता। इन सब बातोंके कारण मैंने

  1. यद्यपि मसविदेमें पानेवालेका नाम नहीं है, फिर भी विषयसे यह स्पष्ट है कि पत्र लॉर्ड ऍस्टहिलको लिखा गया था। इसकी पहुँच देते हुए उन्होंने १ नवम्बरको गांधीजीको लिखा था:"... यद्यपि मैं अभी कुछ भी कहना नहीं चाहता, तथापि विचारोंकी अभिव्यक्तिके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और उनकी सचाई और भावनाकी सराहना करता हूँ किन्तु मुझे कहना पड़ता है कि आपके तर्क पूरी तरह मेरी समझमें नहीं आये और आपके निष्कर्षोंके विषयमें भी मैं द्विधामें हूँ। मैं आपसे इस विषयमें बात करना चाहूँगा। (चूँकि अब लन्दनमें हूँ), जैसे ही फुरसत पाऊँगा, आपको आकर मिलनेके लिए कहूँगा ।"
  2. मूलमें कोई तारीख नहीं है; यह इस पत्रके उत्तर में लिखी लॉर्ड ऍम्टहिल्की चिट्ठीसे ली गई है।