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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ढिंढोरा पीटा जाता है। मेरे खयालसे कलकत्ता और बम्बई-जैसे शहरोंका बनना दुःख की बात है, बधाई देनेकी नहीं। भारतको ग्राम-प्रथाके आंशिक उन्मूलनसे हानि हुई है। उनकी तरह मुझमें भी राष्ट्रीय भावना है; इसलिए गर्मदलियों या नर्मदलियोंके तरीकोंसे मेरा पूरा मतभेद है। इसका कारण यह है कि दोनों ही दल आखिरकार हिंसामें विश्वास करते हैं। हिंसात्मक तरीकोंका अर्थ है आधुनिक सभ्यताको, और इस तरह उसी विनाशकारी स्पर्धाको अंगीकार करना, जिसे हम यहाँ देखते हैं। इसका अर्थ है अन्तमें सच्ची नैतिकताका ध्वंस। कौन शासन करता है, इस बात में मेरी दिलचस्पी नहीं है। मैं तो चाहूँगा कि शासक मेरी इच्छाके अनुसार शासन करें, अन्यथा मैं उन्हें अपने ऊपर शासन करनेमें सहायता न दूँगा। मैं उनके विरुद्ध अनाक्रामक प्रतिरोध करूँगा। अनाक्रामक प्रतिरोध शरीर-बलके विरुद्ध आत्मबलका प्रयोग है—दूसरे शब्दोंमें, घृणापर विजय प्राप्त करनेवाला प्रेम का।

मैं नहीं जानता कि मैं अपनी बात कहाँतक समझा सका हूँ, और मैं यह भी नहीं जानता कि मैं अपने इस विवेचनसे आपको कहाँतक सहमत कर सका हूँ। परन्तु मैंने ऊपर बताये गये तरीकेसे अपने देशके लोगोंके सामने सारा मामला रखा है। मैंने आपको यह पत्र दो उद्देश्योंसे लिखा है। पहला उद्देश्य आपको यह बताना है कि जब-कभी समय मिलेगा, मैं राष्ट्रीय पुनरुत्थानमें अपना विनम्र योगदान करना चाहूँगा और दूसरा उद्देश्य यह है कि मैं जब-कभी बड़ा काम करूँ तब या तो उसमें आपका सहयोग ले सकूँ या आपसे उसकी आलोचनाका अनुरोध कर सकूँ।

मैंने आपको जो जानकारी दी है वह बिल्कुल गोपनीय है, उसका और कोई ऐसा प्रयोग नहीं किया जाये जिससे मेरे देशके लोगोंके हितकी हानि हो। मुझे लगता है कि जब-तक सत्य भली भाँति मालूम नहीं हो जाता तबतक कोई उपयोगी उद्देश्य सिद्ध न होगा।

अगर आप कुछ और जानना चाहते हों तो आप जो भी प्रश्न पूछना चाहें, मैं उसका उत्तर खुशीसे दूँगा। श्री रिचको इस पत्रकी पूरी जानकारी है। अगर बातचीत आवश्यक समझें तो मैं तैयार हूँ।

अन्तमें आशा है, मैंने आपके सौजन्यका अनुचित और अवांछनीय लाभ नहीं उठाया है और आपका ध्यान इस ओर अकारण ही आकर्षित करनेकी धृष्टता नहीं की है।

आपका, आदि,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी मसविदेकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ५१५२) से।