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३३२. भाषण: न्यू रिफॉर्म क्लबमें[१]

[लन्दन
अक्तूबर ३०, १९०९]

(उन्होंने कहा,) यह लड़ाई अन्तरात्माकी स्वतन्त्रता, विचारोंकी स्वतन्त्रता और कर्मकी स्वतन्त्रताके लिए लड़ी जा रही है, मत देनेके यान्त्रिक अधिकारके लिए नहीं। ब्रिटिश भारतीय सबसे पहले १८८३ में ट्रान्सवाल आये थे, और तभीसे उन लोगोंने, जो यह न समझ सकते थे कि ऐसे देशमें रहना भारतीयोंके लिए कितना मुश्किल है, उनके गुणोंको दोष मान लिया था।

हमने लॉर्ड लैंसडाउनसे सुना था कि [बोअर] युद्ध जितना डचेतर गोरोंके लिए लड़ा गया था उतना ही ब्रिटिश भारतीयोंके लिए भी। लेकिन लड़ाईके खत्म होनेपर ब्रिटिश भारतीयोंकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई। उनके लिए खास बस्तियाँ बना दी गई हैं; वे सिर्फ वहीं व्यापार कर सकते हैं या जमीनें ले सकते हैं। उन्हें नागरिक अधिकार बिलकुल नहीं दिये गये हैं और उनको पैदल पटरीपर चलने तकका हक नहीं है। जब कानूनकी निगाहमें उनकी हालत इतनी गिरा दी गई है तब यह अनुमान किया जा सकता है कि ट्रान्सवालके लोग उनके साथ कैसा बरताव करते होंगे। कई राजनयिक उन थोड़े-से आन्दोलन-कारियोंकी बातोंमें आ गये हैं, जो व्यापारमें ब्रिटिश भारतीयोंके प्रतिस्पर्धी हैं; और १९०६ के नये पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) कानूनका उपयोग ब्रिटिश भारतीयोंपर अत्याचार करनेके लिए किया गया है। जिन लोगोंमें कुछ भी आत्म-सम्मानका भाव है, उनके लिए उस कानूनको मानना असम्भव है। शिष्टमण्डलोंसे मिलनसे इनकार कर दिया जाता है और अदालती जाँचकी प्रार्थना भी नहीं मानी जाती। ब्रिटिश भारतीय जेलोंमें ठूँस दिये गये हैं, काले लोगोंके साथ वर्गीकृत किये गये हैं और वे उन्होंकी खुराक लेनेके लिए मजबूर किये गये हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि उन्हें करीब-करीब भूखों मरना पड़ता है। वे अपने जातीय सम्मानको रक्षाके लिए अनाक्रामक प्रतिरोधी बन गये हैं। सम्भव है, उनकी सुनवाई होनमें वर्षों लग जायें; लेकिन इस विलंबका कारण यही होगा कि अभी उन्होंने पर्याप्त कष्ट नहीं सहे हैं। न्याय उनके पक्षमें है। हिन्दुओं, मुसलमानों और तमिलोंने इस उद्देश्य के लिए साथ-साथ काम करके एक बड़ी जातीय समस्या हल कर दी है।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया, ५-११-१९०९
 
  1. गांधीजीने इंडियन यूनियन सोसायटी के सदस्योंके सामने "दक्षिण आफ्रिकामें सह-नागरिकताके लिए संघर्ष: उससे शिक्षाएँ" विषयपर यह भाषण दिया था।