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३३७. पत्र: अखबारोंको

लन्दन
नवम्बर ५, १९०९

महोदय,

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्टमण्डल गत १० जुलाईको लन्दनमें आया था। उस उपनिवेशके ब्रिटिश भारतीयोंके मामलेका संलग्न विवरण[१] इस शिष्टमण्डलके लन्दन में आते ही तैयार किया गया था। लेकिन तब शान्तिपूर्ण समझौता करनेको दृष्टि से नाजुक बातचीत चल रही थी; इसलिए इसे प्रकाशित नहीं किया। हमें अब मालूम हुआ है कि यह बातचीत असफल हो गई है और स्थिति जैसी थी वैसी ही है। इसलिए हमारे लिए यहाँके लोगोंको यह बताना आवश्यक हो गया है कि स्थिति क्या है और ट्रान्सवालमें भारतीयोंके संघर्षका मतलब क्या है।

ट्रान्सवालके भूतपूर्व उपनिवेश-सचिवने गत फरवरी मासमें, जब यह उपनिवेश ताजके शासनाधीन था, एक दक्षिण आफ्रिकी पत्रिकामें एक लेख लिखा था। उसमें उन्होंने इस प्रश्नका सही-सही खुलासा इस प्रकार किया था:

भारतीय नेताओंकी स्थिति यह है कि वे ऐसा कोई कानून सहन न करेंगे जिसमें, प्रवासके सम्बन्धमें उनको यूरोपीयोंके समान अधिकार न दिये जायें। वे यह स्वीकार कर लेंगे कि एशियाइयों की संख्या प्रशासकीय कार्रवाईसे सीमित कर दी जाये...। उनका आग्रह है कि कानूनमें समानता होनी ही चाहिए।

स्थिति अब भी वही है।

ट्रान्सवालके वर्तमान उपनिवेश सचिव श्री स्मट्सने उस पंजीयन-कानूनका[२], जिसे लेकर पिछले तीन सालसे आन्दोलन चल रहा है, रद करनेका और ट्रान्सवालमें पहलेसे आबाद भारतीयोंके अलावा एक निश्चित संख्यामें ब्रिटिश भारतीयोंको स्थायी निवासके प्रमाणपत्र देनेका प्रस्ताव किया है। अगर ब्रिटिश भारतीयोंका उद्देश्य केवल यह होता कि उपनिवेशमें उनके कुछ भाई और आ जायें तो इस रियायतमें कुछ सार माना जाता। लेकिन इस कानूनको रद करानेके लिए वे जो आन्दोलन कर रहे हैं, उसका उद्देश्य है प्रवासके सम्बन्धमें कानूनी या सैद्धान्तिक समानता प्राप्त करना। इसीलिए कानूनी निर्योग्यताको कायम रखनेके इस प्रस्तावसे उनके उद्देश्यकी पूर्तिकी दिशामें एक कदम प्रगति भी नहीं होती। ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों द्वारा अनाक्रामक प्रतिरोध जारी रखने के बावजूद वर्तमान कानूनमें श्री स्मट्सके द्वारा सुझाया गया ऊपरका परिवर्तन किया जायेगा या नहीं, यह हम नहीं जानते। लेकिन हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि जो रियायतें देनेका प्रस्ताव किया गया है, उनसे अनाक्रामक प्रतिरोधियोंको संतोष नहीं होगा। भारतीय समाजने यह संघर्ष इस उद्देश्य से शुरू किया था कि उक्त कानूनसे समस्त भारतपर जो कलंक लगता है, वह दूर किया जा सके। यह एक ऐसा कानून है जिससे उपनिवेशीय कानूनके इतिहासमें पहली बार किसी ब्रिटिश उपनिवेशके प्रवासी कानूनोंमें प्रजातीय और रंग-सम्बन्धी प्रतिबन्धका समावेश होता है। इससे यह सिद्धान्त स्थापित होता है कि ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवालमें सिर्फ ब्रिटिश भारतीय होनेके कारण नहीं आ सकते। यह परम्परागत

  1. देखिए "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण", पृष्ठ २८७-३००।
  2. रजिस्ट्रेशन लो।