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पत्र: अखबारोंको

नीतिका सम्पूर्ण परित्याग है, अ-ब्रिटिश है और असह्य है। यदि इस सिद्धान्तपर ब्रिटिश भारतीय अपनी मौन स्वीकृति दे भी देंगे तो हमारा खयाल है कि वे अपने-आपको, अपनी जन्मभूमिको और जिस साम्राज्यमें वे रहते हैं उसको धोखा देंगे। फिर, ऐसे मामले में सवाल सिर्फ ट्रान्सवालके अनाक्रामक प्रतिरोधियोंका ही नहीं है। ट्रान्सवालके इस कानूनसे जो अपमान होता है उसे तमाम भारत अनुभव कर रहा है। हमें लगता है कि साम्राज्यके इस केन्द्रीय भागके लोगोंपर भी साम्राज्यीय परम्पराओंके विपरीत उठाये जानेवाले इस अभूतपूर्व कदमका असर हुए बिना न रहेगा। जनरल स्मट्सका प्रस्ताव इस मामलेको बिल्कुल स्पष्ट रूपसे सामने लाता है। अगर हम एक सिद्धान्तके लिए नहीं, बल्कि छोटे-मोटे निजी स्वार्थोंके लिए लड़ रहे होते तो जनरल स्मट्स फौरन् उनको पूरा करनेके लिये तैयार हो जाते, और तिरस्कारपूर्वक उन थोड़े-से सुसंस्कृत ब्रिटिश भारतीयोंके लिए निवासके अनुमतिपत्र दे देते, जिनकी हमें जरूरत पड़ सकती है। लेकिन हमारा आग्रह तो यह है कि उपनिवेशके कानूनमें जो जातीय कलंक निहित है, उसे निकाल दिया जाये, इसीलिए स्मट्स एक इंच भी पीछे हटनेके लिए तैयार नहीं हैं। वे हमें सार निकालकर छूँछ देना चाहते हैं। वे हमारे गलेसे हीनताका पट्टा हटानेसे इनकार करते हैं; हाँ, मौजूदा भद्दे पट्टेके बजाय एक सुन्दर चमकता हुआ पट्टा बाँध देनेके लिए तैयार हैं। परन्तु ब्रिटिश भारतीय इस धोखेकी टट्टीमें फँसना नहीं चाहते। वे सब-कुछ दे सकते हैं, कोई भी स्थिति मंजूर कर सकते हैं; लेकिन पहले यह पट्टा हटाया जाना चाहिए। इसलिए हम विश्वास करते हैं कि जिन दिखावटी रियायतोंको देनेका प्रस्ताव किया जा रहा है, उनसे यहाँके लोग गुमराह न होंगे। वे यह न मान लेंगे कि ब्रिटिश भारतीय इन रियायतोंको मंजूर नहीं करते, इसलिए उनकी माँगें बेजा हैं वे जिद्दी हैं, और समझदार तथा व्यावहारिक लोगोंकी सहानुभूति और सहायताके पात्र नहीं हैं। हमें लॉर्ड क्रू से जो अन्तिम उत्तर मिला है, उसमें यह रुख अख्तियार किया गया है:

लॉर्ड महोदयने आपको बता दिया था कि भारतीयोंको प्रवेशके अधिकार या दूसरी बातोंके सम्बन्धमें यूरोपीयोंकी बराबरीकी स्थितिमें रखा जाना चाहिए, आपकी इस माँगको श्री स्मट्स मंजूर करनेमें असमर्थ हैं।

यही मूल कठिनाई है। ब्रिटिश भारतीय प्रवेशके अधिकारके सम्बन्धमें कानूनी समानता चाहते हैं, चाहे कभी एक भी व्यक्ति प्रविष्ट न हो। वे इसीके लिए लड़ रहे हैं। हमें ट्रान्सवालसे जो खबरें मिली हैं, साम्राज्यकी विविध जातियोंको एक ही प्रभुसत्ताके आधीन एक सूत्र में बाँध रखनेका औचित्य सिर्फ बुनियादी समानता है। लेकिन, उनमें कहा गया है कि इसके लिए कुछ लोग तो अपनी जान दे देंगे। ट्रान्सवालके कानूनसे इस सिद्धान्तकी जड़पर ही कुठाराघात होता है, और इसीलिए ब्रिटिश भारतीयोंने इसका तीव्र विरोध किया है।

कहा जा सकता है कि ट्रान्सवाल स्वशासित उपनिवेश है और अब दक्षिण आफ्रिका संघ-राज्य बन गया है, इसलिए इस मामले में कोई राहत नहीं दी जा सकती; लेकिन यह तर्क तथ्यों के विरुद्ध होगा। स्थितिकी विषमताका कारण साम्राज्यके केन्द्रमें की गई गलती है। साम्राज्यके संविधानके विरुद्ध जो अपराध किया गया है, उसके लिए साम्राज्य-सरकार जिम्मेदार है। उसने उक्त कानूनको उस वक्त मंजूर किया जब उसे ऐसा करनेको जरूरत नहीं थी जब उसे नामंजूर करना उसका कर्तव्य था। अब वह निःसन्देह इस दुःखदायी मामलेको तय करनेके लिए बहुत व्यग्र है। लॉर्ड क्रू ने सन्तोषजनक परिणाम प्राप्त करनेका प्रयत्न किया