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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है; किन्तु यह उन्होंने बहुत देरसे किया है। श्री स्मट्सने लॉर्ड महोदयको इस बातकी उचित याद दिलाई है कि उक्त कानूनपर सम्राट्की मंजूरी मिल चुकी है। ट्रान्सवालके भारतीयोंने उस कानूनको भंग करना और उसको भंग करनेकी सजा भुगतना शुरू कर दिया है; केवल इसीलिए उन्हें अपना पग पीछे हटानेको न कहना चाहिए, न कहा जा सकता है। "श्वेत दक्षिण आफ्रिका" में एक राजनीतिज्ञ और उच्च पदके आकांक्षीके रूपमें उनकी स्थिति निर्विवाद है। किन्तु इससे न तो ब्रिटिश लोगोंका कोई सम्बन्ध है और न भारतीयोंका ही। फिर वे ब्रिटिश सरकारके इस अपराधके लिए जिम्मेदार भी नहीं हैं।

हम यह भी कह दें कि पिछले चार महीनोंमें गिरफ्तारियों और सजाओंमें कोई कमी नहीं हुई है। समाजके नेताओंका जेल जाना जारी है। जेलके कायदोंकी सख्ती कायम है। जेलका खाना और भी खराब कर दिया गया है। जोहानिसबर्गके प्रमुख डॉक्टरोंने गवाही दी है कि भारतीय कैदियोंकी मौजूदा भोजन-तालिका अपर्याप्त है। अधिकारियोंने मुसलमान कैदियोंकी धार्मिक मान्यताओंकी उपेक्षा की है और उन्हें, जिन पवित्र रोजोंको लाखों मुसलमान साल-दर-साल निष्ठासे रखते चले आये हैं, उनको रखनेकी सुविधाएँ देनेसे इनकार कर दिया है। ऐसा पिछले साल नहीं किया गया था। अभी हालमें साठ अनाक्रामक प्रतिरोधी प्रिटोरिया जेलसे छूटे हैं; वे क्षीण और दुर्बल होकर आये हैं। उन्होंने हमें यह खबर भेजी है कि यद्यपि उन्हें भूखों रहना पड़ा, फिर भी सरकार उनको जब गिरफ्तार करना चाहे, वे उसके लिए तैयार हैं। ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष अभी गिरफ्तार किये गये हैं और तीन मासकी सख्त कैदकी सजा देकर जेल भेजे गये हैं। यह उनकी तीसरी जेल-यात्रा है। वे मुसलमान हैं। एक वीर पारसी, जो एक सुशिक्षित व्यक्ति हैं, नेटालको निर्वासित कर दिये गये थे। वे फिर आ गये और अब छः महीनेकी कड़ी कैदकी सजा काट रहे हैं। वे पाँचवीं बार जेल गये हैं। उनके साथ एक दूसरा भारतीय युवक भी, जो कभी स्वयंसेवकोंका सार्जेंट था, तीसरी बार जेल गया है। उसे भी वही सजा दी गई है जो उक्त पारसीको दी गई है। जेल गये हुए ब्रिटिश भारतीयोंके स्त्री-बच्चे टोकरियोंमें फल भरकर इधर-उधर फेरी लगाते हैं और इस तरह अपनी आजीविका कमाते हैं, या उनकी परवरिश चन्देसे की जाती है। श्री स्मट्सने दक्षिण आफ्रिकाके लिए जहाजमें सवार होते समय कहा था कि उनका लॉर्ड क्रू से ऐसा समझौता हो गया है जिससे बहुसंख्यक ब्रिटिश भारतीयोंको, जो आन्दोलनसे अत्यन्त ऊब गये हैं, सन्तोष हो जायेगा। लेकिन उसके बादकी घटनाओंसे उनकी भविष्यवाणी बिल्कुल गलत साबित हुई है।

आपके, आदि,
मो॰ क॰ गांधी
हाजी हबीब

[ संलग्नपत्र ]

वक्तव्यका सारांश

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय पिछले ढाई सालसे अकथनीय कष्ट भुगत रहे हैं। उनका उद्देश्य है:

ट्रान्सवालके एशियाई पंजीयन अधिनियम (१९०७ के कानून २) को रद कराना। कानूनके निर्माता उसे उपनिवेशमें रहनेके अधिकारी ब्रिटिश भारतीयोंकी शिनाख्त