पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

४३. यहाँ यह कह दें कि युद्धसे पहले एशियाइयोंके प्रवासपर कोई रोक न थी । शान्ति-स्थापनाके बाद प्रवास सामान्यतः शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पोस प्रिजर्वेशन ऑर्डिनेंस) के अन्तर्गत नियन्त्रित था । एशियाइयोंका प्रवास १९०७ के एशियाई कानून द्वारा नियन्त्रित नहीं होता था; किन्तु उसमें उपनिवेशमें जो एशियाई बस चुके थे उनके पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) की व्यवस्था थी । तब भी जिस तरह शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत यूरोपीय अनुमतिपत्र ले सकते थे, उसी प्रकार एशियाई भी अनुमतिपत्र ले सकते थे और उनमें से बहुतोंने वस्तुतः ऐसे अनुमतिपत्र लिये भी थे । इसके बाद प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम आया, उसने शान्ति-रक्षा अध्यादेशका स्थान लिया और उसमें नवागन्तुकोंके लिए एक सामान्य शिक्षा-परोक्षाको व्यवस्था की गई । इस तरह एशियाई कानूनके अतिरिक्त उपनिवेशमें शिक्षित एशियाइयोंके प्रवेशमें कभी कोई कानूनी बाधा नहीं रही है । इसलिए यह सही नहीं है, जैसा कि स्थानीय अधिकारियोंने कहा है, कि ब्रिटिश भारतीय कोई नया विवाद उठा रहे हैं । यह प्रश्न पहले-पहल माननीय उपनिवेश सचिवने उठाया था, जब वे पूर्व-उल्लिखित निरसन-विधेयकके द्वारा प्रवासो-प्रतिबन्धक अधिनियमको सब शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशपर रोक लगानेकी दृष्टिसे संशोधित करना चाहते थे ।

अनाक्रामक प्रतिरोध

४४. प्रार्थी संघको दुःख है कि महामहिमकी सरकारने संघ और १९०६ में लन्दन भेजे गये शिष्टमण्डलको प्रार्थना नहीं सुनी और १९०७ का कानून २ स्वीकार कर लिया ।

४५. प्रार्थी संघ महामहिमकी सरकारका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करता है कि शिष्टमण्डलने उसके सामने सितम्बर १९०६ को एम्पायर नाटकघरमें हुई ब्रिटिश भारतीयों-की सार्वजनिक सभाका चौथा प्रस्ताव प्रस्तुत किया था ।" वह प्रस्ताव इस प्रकार है :

विधान सभा, स्थानीय सरकार और साम्राज्य-अधिकारियों द्वारा मसविदा-रूप एशियाई
अधिनियम संशोधन अध्यादेश (ड्राफ्ट एशियाटिक लॉ अमॅडमॅड ऑर्डिनेंस) के सम्बन्ध में
ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय समाजकी विनीत प्रार्थना अस्वीकृत कर दी जानेकी
अवस्थामें, ब्रिटिश भारतीयोंकी यहाँ समवेत यह सार्वजनिक सभा गम्भीरतापूर्वक और
खेदपूर्वक यह निश्चय करती है कि इस मसविदा-रूप अध्यादेशके अपमानजनक,
अत्याचारपूर्ण और अब्रिटिश विधानोंके सामने झुकनेकी अपेक्षा ट्रान्सवालका प्रत्येक
ब्रिटिश भारतीय अपने-आपको जेल जानेके लिए पेश करेगा, और तबतक ऐसा करना
जारी रखेगा जबतक अत्यन्त दयालु महामहिम सम्राट् कृपा करके राहत नहीं देंगे ।

४६. महामहिमकी सरकारपर स्पष्ट ही इस प्रस्तावका बहुत कम असर पड़ा । किन्तु उसके बाद जो कुछ हुआ, उससे प्रकट हो गया है कि सभाकी कार्रवाई संजीदगीसे की गई थी ।

१. इमिग्रेशन रेस्टिक्शन ऐक्ट |

२. अधिनियमके पाठके लिए देखिए, खण्ड ७ का परिशिष्ट ३ ।

३. रिपीलिंग बिल ।

४. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२०-३५ ।

५. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४ ।

Gandhi Heritage Portal