४३. यहाँ यह कह दें कि युद्धसे पहले एशियाइयोंके प्रवासपर कोई रोक न थी । शान्ति-स्थापनाके बाद प्रवास सामान्यतः शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पोस प्रिजर्वेशन ऑर्डिनेंस) के अन्तर्गत नियन्त्रित था । एशियाइयोंका प्रवास १९०७ के एशियाई कानून द्वारा नियन्त्रित नहीं होता था; किन्तु उसमें उपनिवेशमें जो एशियाई बस चुके थे उनके पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) की व्यवस्था थी । तब भी जिस तरह शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत यूरोपीय अनुमतिपत्र ले सकते थे, उसी प्रकार एशियाई भी अनुमतिपत्र ले सकते थे और उनमें से बहुतोंने वस्तुतः ऐसे अनुमतिपत्र लिये भी थे । इसके बाद प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम आया, उसने शान्ति-रक्षा अध्यादेशका स्थान लिया और उसमें नवागन्तुकोंके लिए एक सामान्य शिक्षा-परोक्षाको व्यवस्था की गई । इस तरह एशियाई कानूनके अतिरिक्त उपनिवेशमें शिक्षित एशियाइयोंके प्रवेशमें कभी कोई कानूनी बाधा नहीं रही है । इसलिए यह सही नहीं है, जैसा कि स्थानीय अधिकारियोंने कहा है, कि ब्रिटिश भारतीय कोई नया विवाद उठा रहे हैं । यह प्रश्न पहले-पहल माननीय उपनिवेश सचिवने उठाया था, जब वे पूर्व-उल्लिखित निरसन-विधेयकके द्वारा प्रवासो-प्रतिबन्धक अधिनियमको सब शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशपर रोक लगानेकी दृष्टिसे संशोधित करना चाहते थे ।
अनाक्रामक प्रतिरोध
४४. प्रार्थी संघको दुःख है कि महामहिमकी सरकारने संघ और १९०६ में लन्दन भेजे गये शिष्टमण्डलको प्रार्थना नहीं सुनी और १९०७ का कानून २ स्वीकार कर लिया ।
४५. प्रार्थी संघ महामहिमकी सरकारका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करता है कि शिष्टमण्डलने उसके सामने सितम्बर १९०६ को एम्पायर नाटकघरमें हुई ब्रिटिश भारतीयों-की सार्वजनिक सभाका चौथा प्रस्ताव प्रस्तुत किया था ।" वह प्रस्ताव इस प्रकार है :
- विधान सभा, स्थानीय सरकार और साम्राज्य-अधिकारियों द्वारा मसविदा-रूप एशियाई
- अधिनियम संशोधन अध्यादेश (ड्राफ्ट एशियाटिक लॉ अमॅडमॅड ऑर्डिनेंस) के सम्बन्ध में
- ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय समाजकी विनीत प्रार्थना अस्वीकृत कर दी जानेकी
- अवस्थामें, ब्रिटिश भारतीयोंकी यहाँ समवेत यह सार्वजनिक सभा गम्भीरतापूर्वक और
- खेदपूर्वक यह निश्चय करती है कि इस मसविदा-रूप अध्यादेशके अपमानजनक,
- अत्याचारपूर्ण और अब्रिटिश विधानोंके सामने झुकनेकी अपेक्षा ट्रान्सवालका प्रत्येक
- ब्रिटिश भारतीय अपने-आपको जेल जानेके लिए पेश करेगा, और तबतक ऐसा करना
- जारी रखेगा जबतक अत्यन्त दयालु महामहिम सम्राट् कृपा करके राहत नहीं देंगे ।
४६. महामहिमकी सरकारपर स्पष्ट ही इस प्रस्तावका बहुत कम असर पड़ा । किन्तु उसके बाद जो कुछ हुआ, उससे प्रकट हो गया है कि सभाकी कार्रवाई संजीदगीसे की गई थी ।
१. इमिग्रेशन रेस्टिक्शन ऐक्ट |
२. अधिनियमके पाठके लिए देखिए, खण्ड ७ का परिशिष्ट ३ ।
३. रिपीलिंग बिल ।
४. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२०-३५ ।
५. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४ ।
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