पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२३
पत्र: अखबारोंको

करनेकी कार्रवाई मात्र बताते हैं; किन्तु ब्रिटिश भारतीय खुद उसे अत्यन्त आपत्तिजनक मानते हैं। क्योंकि वास्तवमें—

(१) इस कानूनसे उनकी धार्मिक भावनाओंको चोट लगती है और कई तरहसे उनका अपमान होता है; और
(२) बादकी तारीखके एक दूसरे कानूनके साथ (जो प्रवासी अधिनियम कहलाता है) मिलाकर पढ़नेसे यह भारतीयोंके प्रवासके मार्गमें, चाहे ये भारतीय कितने ही सुसंस्कृत क्यों न हों, उनकी जाति और रंगके कारण एक अलंध्य रुकावट पैदा करता है।

वे जो राहत चाहते हैं, वह पंजीयन कानूनको रद करने और प्रवासी कानूनके छोटे-से संशोधनसे, उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी बाढ़ रोकनेकी नीतिको खतरेमें डाले बिना, आसानीसे दी जा सकती है। कानूनको रद करने और संशोधनकी कार्रवाईका क्रियात्मक प्रभाव होगा जातीय अपमानका निराकरण और उससे शायद कुछ थोड़े-से नवागन्तुक भारतीय ही प्रवेश कर पायेंगे, जिनकी यहाँ आबाद भारतीय समाजकी आध्यात्मिक और बौद्धिक आवश्यकताएँ पूरी करनेके लिए जरूरत है।

ट्रान्सवालमें वास्तवमें इस समय जो भारतीय रहते हैं, उनकी संख्या लगभग ५,००० है।

ट्रान्सवालमें अधिवास-प्राप्त भारतीय आबादी करीब १३,००० है।

इस अन्तरका अर्थ यह है कि लगभग ८,००० भारतीय फिलहाल ट्रान्सवालसे भगा दिये गये हैं, क्योंकि वे इतने कमजोर हैं कि जेल जीवनके शारीरिक कष्टोंको सहन नहीं कर सकते।

२,५०० से ज्यादा ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवालकी जेलको सुशोभित कर आये हैं। इनमें से १५० के सिवा बाकी सबको सपरिश्रम कारावासकी सजाएँ दी गई हैं। ये सजाएँ चार दिनसे लेकर छ: मास तक की कड़ी कैदकी थीं। इस संघर्षमें सैकड़ों भारतीय बर्बाद हो चुके हैं। कितने ही परिवारोंका भरण-पोषण जनताके चन्देसे किया गया है, क्योंकि परिवारके कमाऊ लोग ट्रान्सवालकी जेलोंमें बन्द हैं। बूढ़े और जवान सभी भारतीयोंने कैद भुगती है और अब भी भुगत रहे हैं। कितने ही नेता इस समय जेलोंमें हैं। इनमें ब्रिटिश भारतीय संघ के मुस्लिम अध्यक्ष और एक पारसी सज्जन भी हैं, जो समस्त दक्षिण आफ्रिकामें अपनी दानशीलताके लिए प्रसिद्ध हैं। बाप और बेटोंने साथ-साथ कैद भोगी है। लगभग साठ भारतीय भारतको निर्वासित कर दिये गये हैं। वे जब वहाँ उतरे तब उनके पास न एक पैसा था और न कोई मित्र।

ट्रान्सवालके कुछ उदारमना यूरोपीयोंके एक दलने, जिसमें ट्रान्सवालके संसद सदस्य श्री डब्ल्यू॰ हॉस्केन भी हैं, न्याय-प्राप्तिके लिए अपनी एक समिति बना ली है।

हिन्दू और मुसलमान, पारसी और सिख कन्धेसे-कन्धा मिलाकर लड़ रहे हैं। आजका संघर्ष अपने तीस करोड़ देशवासियोंकी सम्मान-रक्षाके लिए जारी रखा जा रहा है और वह बिल्कुल निःस्वार्थ है। कष्ट भुगतनेवाले लोगोंको अपना कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं करना है।

भारतीयोंका कहना है कि ट्रान्सवालके उपनिवेश-सचिव जनरल स्मट्स १९०७ के एशियाई पंजीयन कानूनको रद करनेके लिए वचनबद्ध हैं। यदि यह कानून वापस ले लिया जाता, तो शिक्षित-भारतीयोंका प्रश्न अपने-आप हल हो जाता, क्योंकि इसके बिना ऊपर कहे हुए