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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रवासी कानूनसे उच्च शिक्षा-प्राप्त भारतीयोंके प्रवेशमें कोई रुकावट नहीं होती। जनरल स्मट्सका कहना है कि उन्होंने श्री गांधीसे इस कानूनको रद करने के सम्बन्ध में बातचीत की थी, लेकिन कोई निश्चित वचन देनेकी बात उनको याद नहीं आती। श्री गांधीने हलफनामा दाखिल किया है कि ऐसा वचन दिया गया था और अपने कथनके समर्थनमें लिखित प्रमाण भी पेश किये हैं। जनरल स्मट्सका कहना है कि भारतीयोंकी माँगें क्रियात्मक रूपमें पूरी हो गई, क्योंकि उनकी इच्छा पंजीयन कानूनको अमल-बाहर मानकर चलनेकी है; वे इसके लिए तैयार हैं कि शिक्षित भारतीय अनुमति लेकर और अस्थायी अनुमतिपत्रोंसे प्रवेश करें और इन अनुमतिपत्रोंकी अवधि समय-समयपर बढ़ाई जाती रहेगी। भारतीयों की मान्यता है कि उक्त कानूनको रद करवाना उनका महत्त्वपूर्ण दायित्व है और यदि यह कानून अमल-बाहर है तो इससे सरकारको कोई लाभ नहीं हो सकता। उनका यह भी कहना है कि शिक्षित भारतीयोंका अनुमति लेकर प्रवेश करना बेकार है, क्योंकि यह आन्दोलन कुछ व्यक्तियोंके प्रवेश प्राप्त करनेके लिए नहीं, बल्कि जातीय सम्मानकी रक्षाके लिए किया जा रहा है। इस अनावश्यक कानूनी जातीय निर्योग्यतासे स्थिति इतनी अपमानास्पद हो जाती है और यह समस्त भारतीय जातिके लिए कष्टका स्थायी स्रोत बन जाती है। यह कानून उपनिवेशोंके इतिहासमें इस ढंगका पहला कानून है। किसी भी दूसरे स्वशासित उपनिवेशमें ऐसा कानून नहीं है जिसमें ऐसा जातीय अपमान हो, जिसे लॉर्ड मॉर्लेने "दुष्टतापूर्ण प्रतिबन्ध" कहा है।

ब्रिटिश भारतीयोंकी इच्छा यह नहीं है कि उनके देशवासी ट्रान्सवालमें अन्धाधुन्ध भर जायें। उनका निवेदन यह है कि प्रवासी कानूनके उचित अमलसे थोड़े-से भारतीयों—उदाहरणार्थ प्रति वर्ष छ: उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयों—के अतिरिक्त सब उपनिवेशमें प्रविष्ट होनेसे रोक दिये जायें। केप, आस्ट्रेलिया और दूसरे उपनिवेशोंने एशियाइयोंके प्रवासका प्रश्न जातीय कानूनका सहारा लिये बिना ही तय कर लिया है।

छपी हुई अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१८०) से।

३३८. पत्र: उपनिवेश-उपमन्त्रीको

[लन्दन]
नवम्बर ६, १९०९

महोदय,

मुझे आपका इसी ३ तारीखका पत्र, संख्या ३४५१९/१९०९, प्राप्त करनेका सौभाग्य मिला।[१] यह अत्यन्त खेदजनक बात है कि अर्ल ऑफ़ क्रू प्रवासके सम्बन्धमें उस सैद्धान्तिक समानताको मंजूर करानेकी आशा नहीं बँधा सकते जिसकी माँग ब्रिटिश भारतीय करते हैं। यह सैद्धान्तिक समानता अबतक सारे उपनिवेशोंमें मान्य रही है और सादर निवेदन है कि, एकमात्र इसके कारण ही एक प्रभुसत्ताके अधीन विश्वकी विभिन्न जातियोंके एकीकरणका औचित्य सिद्ध हो सकता है। इस स्थितिको जनताके सामने रख देने और ट्रान्सवाल लौट

  1. देखिए परिशिष्ट ३१।