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पत्र: ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको

जानेके सिवा मेरे और मेरे साथीके लिए अब कुछ करना शेष नहीं रहता। परन्तु यह प्रश्न साम्राज्यीय महत्त्वका प्रश्न है, यह देखते हुए मैं और मेरे साथी सम्मानपूर्वक आशा करते हैं कि श्रीमान् अब भी ट्रान्सवालके प्रवासी कानूनोंमें मौजूद अपमानजनक रंग सम्बन्धी प्रतिबन्धको दूर करानेके लिए अपने प्रभावको काममें लायेंगे [१]

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स २९१/१४२ और टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटोनकल (एस॰ एन॰ ५१६४); से भी।

३३९. पत्र: ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको[२]

[लन्दन
नवम्बर ६, १९०९]

हमें, ब्रिटेनके लोगोंको, आपकी ओरसे यहाँ काम करनेवाले व्यक्तियोंसे आपकी उन मुसीबतों और दिक्कतोंका पता चला है, जिन्हें आप ब्रिटिश झण्डेके नीचे भोग रहे हैं। आप अपनी प्रजाति (रेस) और मातृभूमिकी मान-रक्षाके लिए लड़ रहे हैं, इसकी हम प्रशंसा करते हैं। हमारे खयालसे ट्रान्सवाल सरकारको उन ब्रिटिश प्रजाजनोंपर, जो उनसे भिन्न प्रजातिके और भिन्न रंगके हों, रंग या प्रजातिके आधारपर उपनिवेशमें आनेकी रोक लगानेका कोई हक नहीं है। इसे हम उस साम्राज्यकी, जिसमें आप और हम रहते हैं, परम्पराओंके विपरीत मानते हैं। आपने जो नरम रुख अख्तियार किया है, हम उसकी सराहना करते हैं, क्योंकि जहाँ आप स्वभावतः अपने जातीय सम्मानको निष्कलक बनाये रखनेपर जोर देते हैं, वहाँ आप ट्रान्सवालके उपनिवेशियोंकी भारतीय प्रवासको नियन्त्रित और सीमित करनेकी इच्छाका विरोध नहीं करते। लेकिन आप चाहते हैं कि यह कार्रवाई सामान्य और अप्रजातीय कानूनके अन्तर्गत और ऐसे आर्थिक आधारपर की जाये जो उपनिवेशियोंको उचित प्रतीत हो।

आपने अपनी शिकायतें दूर करानेका जो तरीका अपनाया है वह धर्मको जीवनकी पथ-प्रदर्शक शक्ति माननेवाले हम लोगोंको अच्छा लगा है। आपने अपनी स्थितिको मजबूत करने

 
  1. नवम्बर ९ को लिखे एक आलेखसे उपनिवेश-कार्यालयपर हुई प्रतिक्रियाका पता चल जाता है। गांधीजीका पत्र पानेपर उपनिवेश कार्यालयने ट्रान्सवाल सरकारको एक तार भेजा था। देखिए परिशिष्ट ३३।
  2. इसका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था। यह ५ तारीख तक तैयार हो चुका था, क्योंकि अगले दिन होनेवाली सभामें कार्यक्रम और मसविदा विचारार्थ प्रस्तुत किये जानेवाले थे। देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ५१८। यह ब्रिटेनके जो लोग अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलनसे सहानुभूति रखते थे उनकी ओरसे "ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय भाइयों और बहनोंको" लिखा गया था। इसपर स्वयंसेवकोंके एक दलने उन लोगों के दस्तखत करवाये थे।