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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


और अधिकारियोंको अपने उद्देश्यके न्यायोचित होने और अपनी माँगकी सचाईका विश्वास दिलाने में हिंसा और शरीरबलका सहारा नहीं लिया है, बल्कि उस कानूनको, जिसे आप उचित ही अपनी अन्तरात्माके विरुद्ध समझते हैं, माननेसे बहादुरीके साथ इनकार करके स्वयं कष्ट सहा है और कानूनकी अवज्ञाके फलस्वरूप मिलनेवाले दण्डको स्वीकार करके आपमें से २,५०० लोग अबतक जेल जा चुके हैं। ये सजाएँ छः महीने तक की और ज्यादातर सख्त कैदकी थीं। आपमें से कुछ लोग कंगाल हो गये हैं। स्त्रियोंने धैर्यपूर्वक अपने पतियोंका वियोग सहा है और उनकी हालत करीब-करीब भूखों मरनेकी हो गई है। आपके व्यापारियोंने अपना माल बिक जाने दिया है और अपने लेनदारोंको माल ले जाने दिया। इस तरहके कष्ट सहकर आप विश्वके विभिन्न धर्मोके महान आचार्योंके सच्चे साहसका परिचय दे रहे हैं। हमें आपसे सहानुभूति है। कहनेका आशय यह है कि हमारा समस्त जीवन साक्षी रहेगा कि हम कितने सच्चे दिलसे चाहते हैं कि यह संघर्ष जारी रखनेके लिए आपको बल और साहस प्राप्त हो। आपके प्रति अपनी सहानुभूतिको व्यक्त करनेके लिए हम इस पत्रपर अपने हस्ताक्षर कर रहे हैं। आपके कष्ट दूर करनेके लिए जितना धन देना हमें जरूरी लगता है। उतना धन भी दे रहे हैं। हमें आशा है कि ट्रान्सवालके अधिकारी और लन्दनके अधिकारी भी अपनी आँखें खोलेंगे और तुरन्त सहायता प्रदान करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-१२-१९०९

३४०. शिष्टमण्डलकी आखिरी चिट्ठी[१]

[ नवम्बर ६, १९०९ के बाद ]

लॉर्ड क्रू का उत्तर

अब सब दिनके उजाले-जैसा साफ दिखाई देता है। लॉर्ड क्रू ने स्पष्ट उत्तर दे दिया है। उन्होंने लिखा है :[२]

श्री स्मट्स दो बातें स्वीकार करते हैं: १९०७ का कानून २ रद कर दिया जायेगा और हर साल छ: शिक्षित एशियाइयोंको स्थायी निवासीके रूपमें यहाँ आने दिया जायेगा। आप स्वीकार करेंगे कि यह जो वे देना चाहते हैं, आगेकी ओर एक कदम माना जायेगा; क्योंकि इससे कानूनको बदलनेका जो असर होना चाहिए वह तो हो जायेगा। लेकिन आप जो भारतीयोंको कानूनमें यूरोपीयोंके बराबर हक देनेकी माँग करते हैं, उस माँगके मंजूर होनेकी आशा लॉर्ड क्रू नहीं दिला सकते। १६ सितम्बरकी भेंटमें लॉर्ड क्रू ने आपसे कहा था कि प्रवेश और अन्य बातोंके सम्बन्धमें भारतीयोंको यूरोपीयोंके बराबर हक देनेकी माँग श्री स्मट्स मंजूर नहीं कर सकते।
  1. यह इंडियन ओपिनियन में इन शीर्षकोंसे छपा था, "इंग्लैंड में किया गया काम : अखबारोंको विस्तृत पत्र: लड़ाई में मदद प्राप्त करनेके लिए स्वयंसेवक। "
  2. पूर्ण पाठके लिए देखिए परिशिष्ट ३१।