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शिष्टमण्डलकी आखीरी चिट्ठी

लन्दनके भारतीयोंकी सभा

गत मंगलवारको यहाँ रहनेवाले भारतीयोंकी सभा हुई थी। इस सभामें चालीस-पचास भारतीय आये होंगे। उनके सामने श्री हाजी हबीब, श्री आंगलिया और मैंने भाषण दिये। मैंने मांग की कि कुछ भारतीय स्वयंसेवक बनें और घर-घर जाकर एक सहानुभूति-पत्रपर[१] हस्ताक्षर करायें। लोग पत्रपर हस्ताक्षर करनेके साथ-साथ जितना चाहें उतना पैसा भी दें, जो कमसे-कम एक फादिंग हो। ऐसे हजारों हस्ताक्षर प्राप्त हो सकते हैं। उनका असर ब्रिटिश सरकार और दूसरोंपर हुए बिना न रहेगा। इस माँगको स्वीकार करके लगभग २० भारतीयोंने तत्काल ही अपने नाम दिये। यह एक बड़ी बात है। इसकी जड़ें गहरी जा सकती हैं। और यदि सब स्वयंसेवक पूरी ईमानदारीसे काम करें तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। ऐसी हालतमें यदि एक ओर भारतमें और दूसरी ओर इंग्लैंडमें जोरोंसे काम चले और हम ट्रान्सवालमें उत्साह बनाये रखें तो बहुत शीघ्र लड़ाईका अन्त हो सकता है। बादमें कुछ यूरोपीयोंके नाम भी मिले। कुल मिलाकर ये नाम मिले हैं:

सर्वश्री जी॰ सी॰ वर्मा, एस॰ पी॰ वर्मा, एफ॰ लालन, जे॰ पी॰ पटेल, के॰ अमीद, एन॰ द्वारकादास, डी॰ सी॰ घोष, एच॰ एम॰ बोस, जी॰ एच॰ खान, अब्दुल हक, एस॰ मंगा, ए॰ हाफिजी, बी॰ सहाय, एच॰ आर॰ बिलिमोरिया, डी॰ सिंह, बी॰ प्रसाद, हुसेन दाउद, ए॰ एच॰ गुल, आर॰ जी॰ मुंसिफ, एम॰ के॰ आजाद, पी॰ बनर्जी, ए॰ मैन और एच॰ ई॰ चीजमैन। निम्न महिलाएँ भी हैं: कुमारी एफ॰ विटरबॉटम, श्रीमती जी॰ नाग, श्रीमती पोलक, श्रीमती दुबे, कुमारी हुसेन और श्री पोलककी पुत्रियाँ।

अखबार निकालनेका सुझाव

इसके अलावा ऐसा विचार भी है कि जबतक लड़ाई चलती है तबतक यहाँ एक छोटा-सा अखबार निकाला जाये। इस अखबारमें दक्षिण आफ्रिका और भारतसे प्राप्त समाचारोंका सार छापा जाये और यह अखबार अनेक स्थानोंमें बेचा जाये। ऐसा निश्चय किया गया है कि यह तभी निकाला जाये जब इसका खर्च यहींके गोरे उठायें। इसको चलाना गोरोंका कर्तव्य है। और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। दिक्कत यह आती है कि श्री रिचको इतनी फुरसत नहीं है और इनकी तरह काम करनेवाला कोई दूसरा इस समय है नहीं। उनके मातहत काम करनेवाले बहुत मिलते हैं, लेकिन जरूरत किसी ऐसे व्यक्तिकी है जो अपना सारा वक्त उसमें लगा दे। ऐसा व्यक्ति मिले, तभी अखबार निकल सकता है।

मायरकी सहायता

अन्तमें, प्रख्यात पादरी श्री मायरने, जो कुछ समयके लिए जोहानिसबर्ग आये थे, अपने खर्चसे एक चायपार्टीका आयोजन किया है। इसका उद्देश्य यह है कि लोग हम दोनोंसे मिल सकें। पार्टीमें उन्होंने लगभग ६० लोगोंको बुलाया है। उसमें सब मामला समझाया जायेगा। समारोह शुक्रवार, १२ तारीखको होगा।[२] अब चारों ओर ऐसा सब हो रहा है। किन्तु, इसका असर कितना होगा, यह हमारी हिम्मतपर निर्भर है। श्री मायरके अन्तिम शब्द ये थे:[३] "हम

  1. देखिए पिछला शीर्षक।
  2. देखिए "भाषण: विदाई सभामें," पृष्ठ ५४५-५०।
  3. गांधीजी २४ सितम्बर को दोपहरके भोजनपर रेवरेंड मायरसे मिले थे।
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