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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(अंग्रेज) आपकी बहुत सहायता नहीं कर सकते। आपको कष्ट सहने होंगे, आपको जेल जाना पड़ेगा। ऐसा करनेपर और जब भारत जगेगा तभी, इसका अन्त होगा। आप याद रखिए कि इसके बिना कुछ नहीं होगा। मैं तो, जो मुझसे हो सकेगा, करूँगा ही।" यह कहना ठीक ही है। दूसरे लोग हमारे लिए कुछ कर देंगे, यह मान बैठना भ्रमपूर्ण है।

डॉ॰ कुमारी जोशी और श्री मह्स्करने लड़ाईके लिए तीन-तीन पौंड दिये हैं। श्री गोकुलभाई दलालने १० शिलिंगकी रकम भेजी है। डॉ॰ जोशीने ['इंडियन ओपिनियन' के] सम्पादकको पत्र भी लिखा है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१२-१९०९

३४१. लन्दन

[नवम्बर ८, १९०९ के पूर्व]

स्त्रियोंके मताधिकारके लिए आन्दोलन करनेवाली महिलाएँ

मुझे तो लगता है कि इस समय स्त्रियाँ मताधिकार लेनेके लिए जो लड़ाई चला रही हैं, वह हमारे लिए अधिकसे-अधिक उपयोगी है। उसका महत्त्व दक्षिण आफ्रिका और भारत, दोनोंके लिए है। हमें उनकी बहुत-सी बातोंका अनुकरण करना चाहिए, और बहुत-सी बातें छोड़ देनी चाहिए। वे हमारी ही भाँति मानती हैं कि उनके हक मारे जा रहे हैं। उनको [पुरुषोंसे] हीन माना जाता है। उनकी लड़ाई लम्बे अर्सेसे चल रही है। उनमें भी दो पक्ष हैं—एक कमजोर और दूसरा ताकतवर। उनमें और हममें अन्तर यह है कि वे सत्याग्रही नहीं हैं, बल्कि शरीर-बलकी पूजा करनेवाली हैं।

उनकी वीरता, उनकी एकता, उनकी धन-त्याग करनेकी वृत्ति और उनकी बुद्धिमत्ता, सभी तारीफ करने और अनुकरण करने लायक हैं। वे पत्थर फेंकती हैं, दूसरोंको कष्ट देती हैं और मर्यादाका अतिक्रमण करती हैं—ये सब छोड़ने लायक हैं। ऐसी तीन घटनाएँ[१] अभी हालमें हुई हैं। मैंचेस्टर जेलमें एक स्त्रीको जबरदस्ती खाना खिलाया जा रहा था। इसलिए उसने ऐसी युक्ति की जिससे [कोठरीका] दरवाजा खोला ही न जा सके। इसपर अधिकारियोंने उसके ऊपर बम्बेसे पानी छोड़ा; उसने फिर भी दरवाजा नहीं खोला। इस स्त्रीकी बहादुरी सच्ची बहादुरी है; लेकिन उसने उसका अनुचित उपयोग किया। जो कष्ट सहन करनेके लिए बैठे हैं, उनसे ऐसा होगा ही नहीं। इसमें उसका उद्देश्य जेलसे छूटना था। वह पूरा हो गया लेकिन इससे स्त्रियोंको अधिकार तो नहीं मिला। जब बम्बेसे पानी छोड़नेकी बात फैली तब उस स्त्रीको रिहा करनेका हुक्म दे दिया गया।

यहाँके एक हलकेमें कॉमन्स सभाके लिए सदस्यका चुनाव किया जा रहा था। दो स्त्रियाँ मतदानपत्रोंको खराब करनेके इरादेसे निकलीं। उन्होंने कागज जलानेका तेजाब अपने

  1. इनमें से पहली दो घटनाओंकी खबरें ६-११-१९०९ के इंडियन ओपिनियनके गुजराती स्तम्भोंमें छपी थीं।