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लन्दन

साथ ले लिया था। वे किसी युक्तिसे मतदान-केन्द्रमें घुस गई और वहाँ उन्होंने वह तेजाब उड़ेल दिया। उससे ज्यादा कागज तो खराब नहीं हुए; लेकिन उनमें से एक स्त्रीकी हरकतसे एक अधिकारीकी आँखको बहुत नुकसान पहुँचा। यह बहुत ओछा काम है। उसकी निन्दा सभी कर रहे हैं। फिर भी उनके संघने इसका दायित्व अपने ऊपर ले लिया है। इन स्त्रियोंपर अब मुकदमा चलाया जा रहा है।

एक जगह जो डॉक्टर जबरदस्ती खाना खिलाता था, उसके घरके किवाड़ोंके काँच तोड़ दिये गये। इसका उद्देश्य डॉक्टरकी सम्पत्तिको हानि पहुँचाना ही था। इसमें डॉक्टरका क्या कसूर था? वह तो अधिकारी था; इसलिए उसने वह काम अपने जिम्मे लिया था। ये सब [निस्सन्देह] हिम्मतके काम हैं; लेकिन सिर्फ हिम्मतसे कहीं अधिकार नहीं मिलते। हिम्मतका उपयोग अच्छा होना चाहिए।

मुझे हालमें ही मालूम हुआ है कि मताधिकारका आन्दोलन करनेवाली स्त्रियोंके चार अखबार निकलते हैं—तीन साप्ताहिक और एक मासिक। उनके संघकी एक शाखाने निश्चित अवधिसे पहले ही ५०,००० पौंडकी निश्चित रकम इकट्ठी कर ली; इसलिए अब वे १,००,००० पौंड इकट्ठे करनेका विचार कर रही हैं। उनका अपना बैंड अलग है और उनके पत्रोंका अपना चित्रकार भी अलग है। संघकी शाखाओंकी बैठकें सप्ताह भर कहीं-न-कहीं होती ही रहती हैं। अभी मताधिकार मिलनेकी कोई आशा नहीं, लेकिन वे हार नहीं मान रही हैं, लड़ती ही जा रही हैं। उनका यह उत्साह मामूली नहीं है।

बजट

कॉमन्स सभामें बजटपर छः महीने तक बहस चली। अब बजटका बिल मंजूर हो गया है, और सोमवारको लार्ड-सभामें जायेगा। उसपर बहुत विवाद होनेकी सम्भावना है। बहुत-से लोगोंका खयाल है कि लॉर्ड-सभा बजटको नामंजूर कर देगी। ऐसा हुआ तो जनवरीमें नये चुनाव होंगे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि अगर ऐसा होगा तो भी उदार दल ही जीतेगा। इंग्लैंडके लोग फिलहाल तो इस काममें व्यस्त हैं। उनको दूसरी बात सूझती ही नहीं, क्योंकि कॉमन्स सभा और लॉर्ड-सभामें बड़ा संघर्ष चल रहा है। सदस्य एक दूसरेको गालियाँ देते हैं और एक-दूसरेको झूठा मानते हैं। बस, इतनी ही कसर है कि मारपीट नहीं करते। मारपीट नहीं करते तो भलमनसाहतके कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि उस रास्तेसे दोनोंमें से किसीको भी फायदा नहीं। लेकिन यह बात तो बिल्कुल साफ है कि कोई भी दल अपना झगड़ा तय करानेके लिए किसी तीसरेको न बुलायेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१२-१९०९