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३४९. पत्र: गो॰ कृ॰ गोखलेको

लन्दन
नवम्बर ११, १९०९

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

यद्यपि श्री पोलकके द्वारा मुझे आपका यह कृपापूर्ण सन्देश मिल गया था कि मैं आपको प्रोफेसर कहकर सम्बोधित न करूँ,[१] तथापि मैं आपके प्रति श्रद्धाके कारण इससे ज्यादा अपनेपनकी भाषा न अपना सकूँगा।

अपने पिछले पत्रमें श्री पोलकने मुझे लिखा है कि अधिक काम और चिन्तासे आपका स्वास्थ्य बिगड़ गया है और आपकी स्पष्टवादितासे आपकी जान जोखिममें पड़ गई है।[२] मैं तो यह सुझाव दूँगा कि आप ट्रान्सवाल आ जायें और हमारे साथ काम करें। मेरा दावा है कि ट्रान्सवालका संघर्ष हर अर्थमें राष्ट्रीय है। वह अधिकतम प्रोत्साहनके योग्य है। मैं उसे आधुनिक युगका महानतम संघर्ष मानता हूँ। मुझे इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है कि वह अन्तमें सफल होगा परन्तु यदि यह जल्दी सफल हो जायेगा तो इससे भारतमें हिंसात्मक आन्दोलन समाप्त हो जायेगा।

मैं यहाँ अपने देशवासियोंसे बहुत खुलकर मिला-जुला हूँ और मुझे उनमें आपके प्रति तीव्र कटुता दिखाई देती है। ज्यादातर लोगोंका खयाल यह है कि कोई भी सुधार करवानेके लिए हिंसा एकमात्र उपाय है। हम ट्रान्सवालमें यह दिखानेका प्रयत्न कर रहे हैं कि हिंसा व्यर्थ है और उचित उपाय है स्वयं कष्ट सहना, अर्थात्, अनाक्रामक प्रतिरोध। इसलिए यदि आप सार्वजनिक रूपसे यह घोषणा करके ट्रान्सवाल आयें कि आप हमारे दुःखोंमें भाग लेना और इसलिए साम्राज्यके नागरिककी हैसियतसे ट्रान्सवालकी सीमाको पार करना चाहते हैं तो आपके इस कार्यसे आन्दोलनको विश्वव्यापी महत्त्व मिलेगा, संघर्ष जल्दी समाप्त हो जायेगा और आपके देशवासी आपको और अच्छी तरह जान जायेंगे। सम्भवतः यह पिछली बात आपकी दृष्टिमें महत्त्वपूर्ण न हो, परन्तु उन देशवासियोंकी दृष्टिसे मैं इसे महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। यदि आप यहाँ आयें और आपको पकड़ा न जाये तथा मैं स्वतन्त्र रहूँ तो मैं आपकी सेवा करना अपना बहुत बड़ा सम्मान समझूँगा। यदि आप गिरफ्तार कर लिये जायें और जेल भेज दिये जायें तो मुझे प्रसन्नता होगी। यह मेरी भूल हो सकती है, किन्तु मुझे तो लगता है कि यह एक ऐसा कदम है जो भारतकी खातिर उठाने लायक है। मैं इस बातको बहुत ज्यादा महसूस करता हूँ, इसलिए मुझे यह सुझाव देनेके लिए क्षमा किया

  1. पोलकने अपने १० सितम्बरके पत्रमें गांधीजीको सूचित किया था कि श्री गोखले इसे "बहुत औपचारिक" मानतें हैं, और वे और आप एक दूसरेको इतनी अच्छी तरह जानते हैं कि इन औपचारिकताओंकी कोई जरूरत नहीं है।"
  2. पोलकने १४ अक्तूबरको लिखा था: "आप देखेंगे कि बेचारे गोखळेको कितनी तकलीफ सहनी पड़ती है। उन्होंने मुझे (गुप्त रूपसे) बताया है कि उन्हें गवर्नरने बुलाया और चेतावनी दी है कि उनकी जिन्दगी खतरेमें है।"