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पत्र: उपनिवेश उपमन्त्रीको

उपनिवेश-कार्यालयको भेजी हैं, उनमें से अधिकांश, ट्रान्सवालकी विभिन्न जेलोंमें मैंने स्वयं जो-कुछ देखा है, उसके आधारपर सच मालूम होती हैं।

स्वर्गीय नागप्पनकी मृत्युके सम्बन्धमें मजिस्ट्रेटके जाँचके परिणामपर भारतीय समाजने और श्री हॉस्केनकी अध्यक्षतामें नियुक्त यूरोपीय-समितिने आपत्ति की है।[१] इस घटनाके सम्बन्ध में फिर जाँच करनेकी माँग की गई थी; लेकिन वह नामंजूर कर दी गई।[२] इसके अलावा, मैं लॉर्ड महोदयका ध्यान इस ओर भी आकर्षित करना चाहता हूँ कि मृत व्यक्तिको चावल न दिया जानेका आरोप सही मान लिया गया है। उसके पास दो कम्बल थे या नहीं, मजिस्ट्रेटने इस प्रश्नपर कोई निर्णय नहीं दिया है। मृत व्यक्ति जोहानिसबर्ग से कड़ी सर्दीमें कैम्प जेलमें ले जाया गया था और उससे कड़ा काम कराया गया था, ये बातें निर्विवाद हैं।

खुराकके बारेमें लॉर्ड महोदयको जोहानिसबर्गके स्वतन्त्र डॉक्टरोंकी विस्तृत रिपोर्ट मिल ही चुकी है जिससे यह सिद्ध होता है कि वर्तमान खुराक काफी नहीं है।

कैदी मुहम्मद खाँके बारेमें मैं अपने १६ अगस्तके पत्रमें[३] कह ही चुका हूँ कि उसमें कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है। लेकिन सम्बन्धित अधिकारी शिकायतोंको सच नहीं मानते, यह कोई जवाब नहीं है। मैं विश्वास करता हूँ, आप मुझे यह कहनेके लिए क्षमा करेंगे। सरकार चाहती तो मुहम्मद खाँसे कह सकती थी कि वह या तो अपनी बातकी सचाई साबित करे या अपनी शिकायतको वापस ले ले। वह ऐसा अब भी कर सकती है।

इसके बाद दूसरी घटनाएँ हुई हैं। भारतीय कैदियोंको धार्मिक सन्तोष प्राप्त करनेकी और रमजानके पवित्र महीनेमें मुसलमानोंको रोजे रखनेकी सहूलियत देनेसे इनकार कर दिया गया है। इससे यह कथन तो सत्य सिद्ध नहीं होता कि भारतीय कैदियोंसे दयाका बरताव किया जाता है और जेल अधिकारी, अनाक्रामक प्रतिरोधी होनेके कारण ही, उनके साथ सख्ती बरतना नहीं चाहते।

 
  1. ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष ई॰ आई॰ अस्वातने ६ अगस्तको रैंड डेली मेलको एक पत्र लिखा था और उसमें कमिश्नर के निर्णयपर आश्चर्य व्यक्त किया था। उन्होंने यह भी महसूस किया था कि कुछ लोगोंकी गवाहीको महत्त्व नहीं दिया गया। उपनिवेश-मन्त्रीको ३० सितम्बर १९०९ को प्रिटोरिया स्थित ब्रिटिश भारतीय समितिका एक पत्र मिला था जिसमें कहा गया था कि सरकारसे इस मामले में फिरसे जाँच करनेका अनुरोध किया गया है। कलोनियल ऑफ़िसके अधिकारीने १ अक्तूबरके कार्य विवरण में लिखा था: "मुझे लगता है, यह बात बुरी है। नागप्पनकी मृत्युकी सरकारी जाँच बिल्कुल लीपापोती है, और इसलिए स्वभावतः मन्त्रियोंने उसे स्वीकार कर लिया है।...लेकिन, यह साफ जाहिर है कि गवाहीसे आयोगके निष्कर्षों की पुष्टि नहीं होती...।"
  2. यूरोपीय समितिने ट्रान्सवालके कार्यवाहक गवर्नर लॉर्ड मैथुएनसे अपील की थी। लेकिन उन्होंने अपने मन्त्रियों की सलाइसे दुबारा जाँच करनेकी आशा देनेसे इनकार कर दिया।
  3. देखिए "पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको", पृष्ठ ३५७।