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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भारतीय कैदी शायद अब हमेशा अलग कोठरियोंमें बन्द किये जाते हों; लेकिन मैं यह जानता हूँ कि मई महीने तक वे वतनी कैदियोंकी कोठरियोंमें उनके साथ ही बन्द किये जाते थे।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

कलोनियल ऑफ़िस रेकर्ड्स २९१/१४२; और टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१७७) से।

३५२. पत्र: 'डेली टेलीग्राफ' को

[लन्दन]
नवम्बर ११, १९०९

सम्पादक


'डेली टेलीग्राफ'


प्रिय महोदय,

आप मुझसे मिलनेके लिए थोड़ा-सा समय भी नहीं निकाल सके, इसका मुझे खेद है। मुझे यह सन्देश मिला है कि मैं अपनी बात आपको लिखकर भेज दूँ। ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नके सम्बन्धमें अखबारोंको एक विवरण भेजा गया था।[१] अबतककी पूरी स्थिति उस विवरणमें दी गई है। मुझे आशा है कि उसकी प्रति आपने देखी होगी। ट्रान्सवालके भारतीयोंका प्रश्न कितना गम्भीर है, यह मैं व्यक्तिगत रूपमें मिलकर आपको बताना चाहता था। आप पूरक विवरणसे देखेंगे कि अब प्रश्न ट्रान्सवालको एशियाइयोंकी बाढ़से बचानेका नहीं है। अब साफ और सीधा प्रश्न यह रह गया है कि सुसंस्कृत ब्रिटिश भारतीय यूरोपीय प्रवासियोंके बराबर ट्रान्सवालमें प्रवेशका हक पा सकते हैं या नहीं। उस कानूनके बनने से पहले, जिसके विरुद्ध सत्याग्रह किया गया है, उन्हें यूरोपीय प्रवासियोंके समान अधिकार था और दूसरे ब्रिटिश उपनिवेशोंमें अब भी प्राप्त है। श्री चेम्बरलेनका कहना है कि भारतके करोड़ों लोगोंका यह "अपमान" उपनिवेशीय कानूनके इतिहास में पहली बार किया गया है। इसीलिए मेरा खयाल है कि हमें ब्रिटेनके अखबारोंसे समर्थनकी आशा करनेका हक है। मैं आशा करता हूँ कि आप, जैसे बने वैसे, हमारे आन्दोलनका उचित प्रचार करेंगे और उसका समर्थन करनेकी कृपा करेंगे। यह भी स्मरणीय है कि ट्रान्सवालके करीब-करीब पचास प्रतिशत भारतीय जेल जा चुके हैं। एक युवक भारतीय[२] निमोनियासे मर भी चुका है। उसे जेलमें ही निमोनिया हुआ था, यह बात गवाहोंकी साक्षीसे सिद्ध हो चुकी है।

आपका, आदि,

टाइप की हुई अंग्रेजी दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१७६) से।

  1. देखिए "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण", पृष्ठ २८७-३०० और "पत्र: अखबारोंको", पृष्ठ ५२०-२२
  2. सामी नागप्पन; देखिए, "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण", पृष्ठ २९८।