पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५८

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२८ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय नये कानून के अन्तर्गत प्राप्त लाभोंको स्वीकार करने से इनकार करते रहेंगे और नम्रतापूर्वक कष्ट सहते रहेंगे । निष्कर्ष ५६. अन्त में प्रार्थी संघ विनयपूर्वक निवेदन और प्रार्थना करता है कि यदि महामहिमकी सरकार ब्रिटिश संविधानके सिद्धान्तोंके अनुरूप उपनिवेशमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंको, १९०७ के कानून २ को रद करवाकर और शिक्षित भारतीयोंका दर्जा निश्चित करवाकर, न्याय नहीं दिला सकती, तो १८५८ की' गौरवपूर्ण घोषणा वापस ले ली जाये और उनसे कह दिया जाये कि "ब्रिटिश प्रजा" शब्दोंका अर्थ उनके लिए उससे भिन्न होता है जो यूरो- पीयोंके लिए होता है। और इस कार्य के लिए हम अनुगृहीत होंगे, आदि, आदि । ईसप इस्माइल मियाँ अध्यक्ष, ब्रिटिश भारतीय संघ मो० क० गांधी मन्त्री, ब्रिटिश भारतीय संघ [ अंग्रेजी से ] कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : २९१/१२८ ८. तार : द० आ० ब्रि० भा० समितिको जोहानिसबर्ग सितम्बर ९, १९०८ पन्द्रह निर्वासित ब्रिटिश भारतीयोंको पुनः प्रवेश करनेपर भारी सजाएँ। दाउद, रुस्तमजी, आंगलिया, रांदेरियाको तीन महीनेकी सख्त कैद या ५० पौंड जुर्माना । दूसरोंको छः सप्ताहकी सख्त कैद या २५ पौंड जुर्माना | सबका युद्ध-पूर्व निवासी होने या शैक्षणिक योग्यताके आधारपर ट्रान्सवालमें प्रवेशके अधिकारका दावा । कैदियोंमें हालके जूलू अभियानके तीन साजेंट, सात मुसलमान, दो पारसी, छः हिन्दू शामिल । अत्यन्त सनसनी । संघर्ष पुनः प्रारम्भ होने के समयसे सब वर्गों[ के लोगों ] की सब स्थानोंसे १७५ गिरफ्तारियाँ । इतनी बेहद तकलीफका कारण विधि-पुस्तकमें ऐसा कानून बनाये रखना जो सरकार द्वारा निःसत्व घोषित, और थोड़े-से उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंके पुनः प्रवेशपर प्रतिबन्ध, जो सर्वथा १. मूलमें “१८५७" है । २. इसी तारीख को गुजरात भारतीय संघ (गुजरात इंडियन असोसिएशन), किम्बलेने भी एक तार भेजा था। दोनों तारोंकी प्रतियाँ श्री रिचने १० सितम्बरको उपनिवेश मन्त्रीको प्रेषित कर दी थीं । Gandhi Heritage Portal