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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तैयार नहीं हैं। ट्रान्सवालमें रहनेवाले हम लोग जानते हैं कि हमें इंग्लैंडकी सहानुभूतिपुर नहीं, बल्कि अपनी शक्तिपर निर्भर करना है, और मैं अनुभव करता हूँ कि हममें वह शक्ति है। में मानता हूँ कि जबतक एक भी सत्याग्रही जीवित रहेगा, वह संघर्ष जारी रखेगा। मुझे जोहानिसबर्गसे अभी-अभी एक तार मिला है, जिसमें कहा गया है कि [वहाँके] लोग संघर्षको अन्ततक जारी रखने के लिए कटिबद्ध हैं। यह सन्देश ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा ही नहीं भेजा गया है, इसमें यूरोपीय कार्यकर्ताओंका वह छोटा-सा दल भी शामिल है जिसने विधानसभाके एक सदस्य, श्री विलियम हॉस्केनकी अध्यक्षतामें एक समितिकी स्थापना की है। मैं अपने सुननेवालोंसे कहूँगा कि वे उस यूरोपीय समितिका अनुकरण करें और उन्हें जितना अधिक सम्भव हो, उत्साह प्रदान करें तथा इस प्रकार हमारे कष्टोंका यथाशीघ्र अन्त करायें।[१]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-१२-१९०९
 
  1. गांधीजीके बाद सर रेमंड वेस्ट और सर फ्रेडरिक लेली बोले। सभाकी समाप्तिपर निम्नलिखित प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे पास किया गया: "यह सभा ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों द्वारा अपने नागरिक अधिकारोंके लिए किये जानेवले शान्तिपूर्ण और निस्वार्थ संघर्षके प्रति अपनी हार्दिक सहानुभूति व्यक्त करती है, और इस संघर्ष में सच्चे मनसे प्रोत्साहन प्रदान करती है।"