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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

६. (१) जब भी पंजीयकको यह इतमीनान हो जाये कि कोई एशियाई, जो खण्ड ३ के अधिकारका दावा करता हो [सचमुच] उसका अधिकारी नहीं है, वह उसे पंजीयनका प्रमाणपत्र देनेसे इनकार कर देगा और इसकी सूचना उस एशियाईको उसके अर्जीपत्रमें दिये पतेपर डाकसे भेज दी जायेगी।

(२) पंजीयक द्वारा पंजीयनका प्रमाणपत्र देनेसे इनकार करने के हरएक मामले में, इनकारीकी सूचनाकी तारीखते चौदह दिनके अन्दर उपनिवेश सचिवके नाम लिखित पत्रके द्वारा अपील की जा सकती है और यह अपील ऐसी अपीलें सुननेके लिए गवर्नर द्वारा खास तौरपर नियुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा सुनी जायेगी और यह अपील सुनते समय उक्त मजिस्ट्रेटको, सन् १९०२ के एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ जस्टिस प्रोक्लेमेशन के खण्ड उन्नीसके अन्तर्गत, निम्न कोटिकी अदालत माना जायेगा।

(३) ऐसे एशियाईके मामलेमें जो दक्षिण आफ्रिका तो है किन्तु इस उपनिवेशके बाहर है, ज्यों ही ऐसी अपीलकी सुनवाई की तारीख निश्चित होगी त्यों ही प्रवास विभागका कार्यकारी अधिकारी अपीलकर्ताको उसकी पंजीयन-अर्जीमें दिये गये पतेपर डाकके जरिए एक अस्थायी अनुमतिपत्र भेज देगा जिससे उसे उपनिवेशमें प्रवेश करने और तवतक रहनेका अधिकार मिल जायेगा जबतक कि अपीलका फैसला नहीं हो जाता। यदि अपोल खारिज हो जाती है तो वह मजिस्ट्रेट लिखित रूपमें एक आदेश जारी करेगा कि उस अपीलकर्ताको उपनिवेशसे निकाल दिया जाये और ऐसा हरएक आदेश सन् १९०७ के प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम के खण्ड ६ या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत दिया गया आदेश माना जायेगा।

(४) इस उपनिवेश में स्थित ऐसे बालिग एशियाई के मामले में जिसने इस खण्डके उपखण्ड २ द्वारा निर्धारित अवधिके अन्दर अपील न की हो या की तो हो किन्तु उसपर आगे कार्रवाई न की गई हो या जिसकी अपील खारिज कर दी गई हो, उपरोक्त मजिस्ट्रेट लिखित आदेश जारी करेगा कि उस एशियाईको उपनिवेशसे बाहर निकाल दिया जाये और ऐसा प्रत्येक आदेश सन् १९०७ के प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके खण्ड ६ या उसके किसी संशोधन के अन्तर्गत दिया गया आदेश माना जायेगा।

उपनिवेशसे निष्कासन

७. जो बालिग एशियाई उस तारीख या तारीखोंके बाद, जो उपनिवेश-सचिव द्वारा 'गजट' में अधिसूचित की जायें, उपनिवेशके अन्दर पाया जायेगा और खण्ड ९ में उल्लिखित माँगके किये जानेपर पंजीयनके ऐसे प्रमाणपत्रको जिसका वह वैध धारक है पेश न कर सकेगा, उसे बिना वारंटके गिरफ्तार किया जा सकता है और अधिवासी मजिस्ट्रेट (रेजिडेंट मजिस्ट्रेट) या सहायक अधिवासी मजिस्ट्रेट (असिस्टेंट रेज़िडेंट मजिस्ट्रेट) के सामने पेश किया जा सकता है और यदि वह उक्त मजिस्ट्रेटको इस बातका यथेष्ट प्रमाण न दे सके कि वह पंजीयन प्रमाणपत्रका वैध धारक है, अथवा जिस अवधिके अन्दर उसे इस प्रमाणपत्रके लिए अर्जी दे देनी चाहिए, वह अभी समाप्त नहीं हुई है तो मजिस्ट्रेट, अगले खण्डमें उल्लिखित परिस्थितिको छोड़कर, लिखित रूप में यह आदेश जारी करेगा कि उसे इस उपनिवेशसे बाहर निकाल दिया जाये और ऐसा प्रत्येक आदेश सन् १९०७ के प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके खण्ड ६ या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत किया गया आदेश माना जायेगा।

८. जो बालिग एशियाई खण्ड ४ के उपखण्ड (१) के उपबन्धों के अनुसार पंजीयनके लिए अर्जी नहीं दे सका है, यदि वह उस मजिस्ट्रेटको जिसके सामने वह पेश किया जाये इस वातका इतमीनान करा देगा कि उसकी इस त्रुटिका कोई उपयुक्त और पर्याप्त कारण था तो वह मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त आदेश जारी करने के बजाय उस एशियाईको आठ दिनके अन्दर पंजीयनके लिए अर्जी देनेका निर्देश दे सकता है और यदि वह एशियाई इस निर्देशका पालन करेगा तो उसकी अर्जीपर ठीक उसी तरह विचार किया जायेगा मानो वह पूर्वोक्त उपखण्डके उपबन्धोंके अनुसार ही दी गई हो और इस अधिनियमके सारे उपबन्ध, जो कि उस हालत में लागू होते, यहाँ भी लागू होंगे। किन्तु यदि वह इस निर्देशका पालन न कर सकेगा तो मजिस्ट्रेट उसे पहले कहे अनुसार [उपनिवेशसे] बाहर निकाल देनेका आदेश करेगा और ऐसा आदेश सन् १९०७ के प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके खण्ड ६ या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत किया गया आदेश माना जायेगा।