भाग ३
सामान्य और स्फुट बातें
९. जो भी एशियाई इस उपनिवेश में प्रवेश करे या यहाँ रह रहा हो उसे यहाँ विधिवत् स्थापित पुलिस-दलके किसी यूरोपीय सदस्य, या उपनिवेश-सचिव द्वारा अधिकार-प्राप्त किसी अन्य यूरोपीय व्यक्तिकी माँगपर पंजीयनका अपना प्रमाणपत्र, जिसका वह वैध धारक है, पेश करना होगा और माँग की जानेपर विनियम (रेग्युलेशन) द्वारा निर्धारित अन्य ब्योरा और अपनी शिनाख्त के साधन भी पेश करने पड़ेंगे। वैध रूपसे माँग किये जानेपर जो एशियाई ऐसा प्रमाणपत्र पेश न कर सकेगा उसपर, यदि वह पंजीयनके प्रमाणपत्रका वैध धारक न हो तो, खण्ड ८ में उल्लिखित रीतिके अनुसार कार्रवाई की जा सकेगी।
११. प्रत्येक पंजीयन प्रमाणपत्र सब जगह इस बातका निश्चयात्मक प्रमाण माना जायेगा कि उसके वैध धारकको इस उपनिवेश में प्रवेश करने और रहनेका अधिकार है; किन्तु यह खण्ड उन व्यक्तिर्योपर लागू नहीं होगा जो सन् १९०७ के प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके खण्ड ५ या ६ के अथवा उसके किसी संशोधन के अन्तर्गत उपनिवेशसे निकाल दिये गये हैं।
१२. इस अधिनियम के अन्तर्गत चलाये गये किसी मुकदमे में या किसी दूसरी कार्रवाई में जब भी किसी एशियाईकी उम्रके सम्बन्ध में सन्देह होगा तब पंजीयक अपनी रायके अनुसार उसकी जो भी उम्र समझकर प्रमाणपत्र में भर देगा वही उसकी उम्र मानी जायेगी बशर्ते कि वह एशियाई उससे भिन्न उम्र प्रमाणित न कर दे।
१३. पंजीयनके लिए अर्जी करनेवाले किसी व्यक्तिको विनियमके निर्देशके अनुसार जो हलफनामा देना होगा या शपथपूर्वक जो घोषणा करनी होगी वह स्टैम्प शुल्कसे मुक्त होगी।
व्यापारिक परवाने
१४. (१) सन् १९०५ के राजस्व परवाना अध्यादेश या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत या स्थानिक संस्थाके अधिकार क्षेत्रमें जारी किसी उपनियम या विनियमके अन्तर्गत कोई एशियाई तबतक कोई व्यापारिक परवाना न पा सकेगा जबतक वह परवाना प्रदान करनेके लिए नियुक्त व्यक्तिके समक्ष पंजीयनका वह प्रमाणपत्र जिसका वह वैध धारक है प्रस्तुत न करे और जबतक या तो अंग्रेजीमें अपनी सही न दे दे अथवा ऐसी दूसरी या अतिरिक्त जानकारी न दे अथवा अपनी शिनाख्तके ऐसे साधन न जुटा दे जो उपनिवेश सचिव द्वारा सामान्यतया या कुछ खास मामलोंके लिए निर्धारित किये गये हों।
(२) इस अधिनियमके खण्ड २ के उपखण्ड (१) (ख) में निर्धारित रूपमें अर्जी देनेवाले किसी एशियाईको पूर्वोक्त अध्यादेश या पूर्वोक्त उपनियम या विनियमके अन्तर्गत, १० फरवरी १९०८ और आरम्भ होनेके बीचमें जो भी परवाने दिये गये होंगे, वे सन १९०७ के अधिनियम संख्या २ के खण्ड इस अधिनियम के १३ के उपवन्धों के बावजूद, वैध रीतिसे दिये गये माने जायेंगे।
(३) सन १९०७ के अधिनियम संख्या २ का खण्ड १३ रद कर दिया जायेगा और इसके द्वारा रद किया जाता है।