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परिशिष्ट

ओरसे केवल एक सद्भावनात्मक काम है, जिसका कानूनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि कानूनके अन्तर्गत छपे फार्मोपर रसीदें क्लर्ककी गलतीसे जारी की गई हैं। और जब स्वेच्छया पंजीयन पूरा हो जायेगा तब वह कानून विधान-संहितामें से निकाल दिया जायेगा। उस वक्त थम्बी नायडू भी वहाँ मौजूद थे।

ए॰ एम॰ एन्ड्रज
मेरे सामने,
एल० लॉयनेल गोल्डस्मिड
जस्टिस ऑफ द पीस

जोहानिसबर्गमें
आज ९ सितम्बर १९०८ को घोषित

(५) थम्बी नायडूका हलफनामा

में जोहानिसबर्ग-निवासी थम्बी नायडू संजीदगी और सचाईसे इसके द्वारा निम्न घोषणा करता हूँ:

जोहानिसबर्ग जेलसे पिछली २९ जनवरीको एशियाई पंजीयन कानूनके बारेमें ट्रान्सवालके उपनिवेश सचिवको जो पत्र[१] भेजा गया था, उसपर मैंने भी हस्ताक्षर किये थे। मैंने जब वह पत्र भेजा था तब मुझे यह पूरा विश्वास था कि एशियाई स्वेच्छया पंजीयन करा लेंगे तो कानून रद कर दिया जायेगा। पत्रमें इसका कोई निश्चित उल्लेख नहीं था, जिससे सरकारकी स्थिति यथासम्भव निर्विघ्न हो सके। लेकिन यह बात कह दी गई थी कि यह कानून उन लोगोंपर लागू न किया जाये जो स्वेच्छासे पंजीयन करा लें और यह धारा उनपर लागू हो जो समझौतेकी तारीखको ट्रान्सवालमें रहनेवाले एशियाइयोंके स्वेच्छया पंजीयन के लिए दी गई तीन महीने की मीयाद बीतनेपर भविष्य में कभी उपनिवेशमें आयें। इससे अभिप्राय यही था कि जब एशियाई अपने दायित्वको ईमानदारीसे पूरा कर देंगे तब १९०७ का कानून २ सरकार के लिए किसी कामका नहीं हो सकता, इसलिए वह स्वभावतः रद कर दिया जायेगा। परन्तु कानूनको रद करनेका वादा ठीक-ठीक क्या हो, इस विषयको उपनिवेश सचिव तथा उक्त पत्रके प्रथम हस्ताक्षरकर्ता श्री गांधीके बीच मुलाकात में बहसके लिए रख छोड़ा था। उक्त पत्र उपनिवेश-सचिव के पास भेजा जानेके दो दिन बाद ही श्री गांधी प्रिटोरिया बुलाये गये। उनके प्रिटोरियासे लौटने के बाद सब कैदी छोड़ दिये गये और उसी दिन अर्थात् शुक्रवार ३१ जनवरीको[२], दोपहर के बाद ब्रिटिश भारतीयोंकी एक सभा की गई, जिसमें श्री गांधीने भाषण दिया। इस सभामें श्री गांधीने घोषणा की कि जनरल स्मट्सने कानून रद करनेका वादा किया है; लेकिन शर्तें यह है कि एशियाई समझौतेका अपना भाग पूरा कर दें, अर्थात् स्वेच्छया पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दे दें।

इसके बाद, जन समझौता अमलमें आ गया और जब श्री गांधी और ईसप मियाँपर हमला किया गया उस समय श्री गांधीको और अधिक चोट आनेसे बचाने के प्रयासमें मुझे भी मार खानी पड़ी। मैं पट्टियाँ बँधवा कर ही पंजीयन दफ्तरमें गया और वहाँ मैंने अधिकारियोंको सहायता दी। इसमें कोई शक नहीं कि हमलेका कारण सन्देह था। हमला करनेवाले लोगोंको यह सन्देह था कि श्री गांधीने ठीक काम नहीं किया है। अगर सरकारने कानूनको रद करनेका वादा किया भी है तो वह उसको पूरा न करेगी। हमलेका दूसरा कारण यह था कि नेताओंने दस अँगुलियोंके निशान देकर पंजीयन करानेका सिद्धान्त मान लिया था। इससे पठान और कुछ दूसरे लोग बेहद नाराज हुए। मुझपर और मेरे साथियोंपर यह जिम्मेदारी आ गई थी कि हम लोगोंको स्वेच्छया पंजीयन कराने के लिए तैयार करें। समझौता उचित हुआ है और कानून रद कर दिया जायेगा, लोगोंको इसका विश्वास भी हमें ही दिलाना था।

इस सम्बन्धमें मैंने एशियाई रजिस्ट्रार श्री चैमनेसे कई बार स्थितिपर बातचीत की। श्री चैमनेने मुझसे निश्चित रूपसे कहा था कि स्वेच्छया पंजीयन करानेपर कानून रद कर दिया जायेगा। मुझे मालूम है कि

  1. देखिए, खण्ड ८, पृष्ठ ४१ ।
  2. वही, पृष्ठ ४५।
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