श्री चैमने श्री गांधीके पास एक नोटिसका मसविदा भी ले गये थे, जो कानूनकी मंसूखीके बारेमें 'गज़ट' में छपाया जानेको था। मुझे जो आश्वासन दिया गया था, उसे मैंने अपने देशवासियोंको बता दिया। मुझे निश्चय है कि अगर यह आश्वासन न दिया गया होता तो भारतीय समाजने समझौता मंजूर न किया होता।
सी॰ के॰ थम्बी नायडू
मेरे सामने,
ए॰ एस॰ सी॰ बारट्रॉप
जस्टिस ऑफ द पीस
आज ५ सितम्बर १९०८ को घोषित।
[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकस: २९१/१२८।
परिशिष्ट ५
प्रस्ताव: सार्वजनिक सभामें
[जोहानिसबर्ग
सितम्बर १०, १९०८]
"ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा उन ब्रिटिश भारतीयोंको भारी सजाएँ दी जानेपर खेद प्रकट करती है, जिनपर मंगलवार, ८ सितम्बरको फोक्सरस्टकी अदालत में मुकदमे चलाये गये थे। उनमें से कुछ व्यक्ति दक्षिण आफ्रिकाके अत्यन्त प्रमुख भारतीय हैं और ट्रान्सवालमें आनेके हकका दावा उन सभीका है। सरकार ब्रिटिश भारतीयोंको जो कष्ट देती है, उसके बावजूद ब्रिटिश भारतीय इस प्रस्ताव द्वारा निश्चय करते हैं कि वे तबतक कष्ट सहते रहेंगे जबतक उन्हें उनकी शिकायतोंके सम्बन्ध में वह समाधान प्रदान नहीं किया जाता, जिसके वे अधिकारी हैं।"
यह प्रस्ताव सोरावजी शापुरजीने पेश किया। श्री चेट्टियार (अध्यक्ष, तमिल वेनिफिट सोसाइटी) ने उसका अनुमोदन और सर्वश्री अब्दुल गनी, इमाम अब्दुल कादिर बावजीर (अध्यक्ष, हमीदिया इस्लामिया अंजुमन), खुरशेदजी देसाई और पी॰ लच्छीरामने उसका समर्थन किया।
" यह सभा महामहिम सम्राटकी सरकारसे प्रार्थना करती है कि वह हस्तक्षेप करके अनिश्चितता, चिन्ता और इस अत्यन्त कष्टमय स्थितिको समाप्त कर दे, जो ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय सह रहे हैं।
इस प्रस्तावको श्री इब्राहीम कुवादियाने पेश किया और श्री नादिरशाह कामाने इसका अनुमोदन और सर्वश्री उमरजी साले और पी॰ के॰ नायडूने समर्थन किया।
"यह सभा इस प्रस्ताव द्वारा अध्यक्षको अधिकार देती है कि ये प्रस्ताव सम्बन्धित अधिकारियोंको भेज दें।"
इंडियन ओपिनियन, १९-९-१९०८