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परिशिष्ट ६

गांधीजीको लिखा पादरी जे० जे० डोकका पत्र

११ सदरलैंड एवेन्यू
जोहानिसबर्ग
सितम्बर ३०, १९०९

प्रिय बन्धु,

आपकी 'साँग सेलेस्टियल'[१] की सुन्दर भेंट मुझे बहुत पसन्द आई है। यह हर दृष्टिसे मेरे पासकी बहुमूल्य वस्तुओं में से एक है—रूप में रुचिर, विषयवस्तुकी दृष्टिसे मनमोहक, अत्यन्त मूल्यवान और मित्रताका स्मृति-चिह्न। इसे मैं कृतज्ञतापूर्वक सदा याद रखूँगा—हाँ सदा, अगर आपकी हार्दिक कामना पूरी हो जाये और मैं उसके लिए जेल चला जाऊँ तो भी।

इस सिलसिले में मैं स्वीकार करता हूँ कि हालमें मैं पूरे मनोयोगसे जेल-सुधारके सम्बन्ध में विचार कर रहा हूँ; और, आशा है, इस आधारपर आप मेरे ऊपर किसी स्वार्थमय हेतुका आरोप न करेंगे। फिर भी कौन जानता है कि क्या हो जाये? इस कृपाके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं 'भगवद्गीता 'को गहरी दिलचस्पीसे पढ़ रहा हूँ, यद्यपि मैं नहीं कह सकता कि मैं इस सिद्धान्तसे पूरी तरह सहमत हूँ: "जो यह कहता है, मैंने मनुष्यको मारा है और जो यह समझता है, मैं मारा गया हूँ, वे दोनों ही अज्ञानी हैं; आत्मा न मारता है और न मरता है।" लेकिन यह तो बहुत तर्कका विषय है। काव्य और उसमें ग्रथित बहुत-सी शिक्षा सुन्दर है। मैं आज प्रातः क्विनसे मिलनेकी आशासे दफ्तर गया था; लेकिन वे मिले नहीं। मुझे भय है कि वे बेचारे बहुत मुसीबतमें हैं। मूर्खतापूर्ण मुकदमे पहलेकी तरह ही चल रहे हैं—इनमें एक, जो दूसरेसे ज्यादा स्पष्ट है, अभी एक क्षणके लिए—केवल एक क्षणके लिए—जनताके ध्यान में आया है, वह कल विस्मृत हो जायेगा। ऐसे ही हम सब भी विस्मृत हो जायेंगे और अन्तमें एशियाई प्रश्न भी तय हो जायेगा। हिम्मत रखिए, मेरे मित्र, अब भी सब अच्छा हो होगा।

आप कोशिश कीजिए और अगर हो सके तो अभी जेल जाने, निर्वासित होने या इस तरहको अन्य बातोंसे बचिए मुझे हजारों प्रश्न पूछने हैं। उनमें से हरएकपर, बेशक, साम्राज्यका कल्याण निर्भर है। मैं जानना चाहता हूँ कि भारतीयोंने तार भेजकर आपको भारतसे क्यों बुलाया?[२] मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या डर्बनके लोगोंने भारतीय डोली-वाहकोंको कॉलेंज़ो और स्पिअन कॉप जाते समय अच्छी तरह विदाई दी थी?[३] और आपने लड़ाईके मैदान में जो काम किया, क्या उससे लोगोंका आपके प्रति मैत्रीभाव बढ़ा था? तबसे जो-कुछ हुआ है, मैं वह सब जानता हूँ। और मैं आपको कैबिनेट साइजकी एक अच्छी तसवीर खास तौरसे चाहता हूँ। उसमें आप अपनी टोपी न लगाये हों। तो, आप अभी गिरफ्तार न हों। हम सब श्रीमती गांधीको और आपको प्रेमपूर्वक याद करते हैं।

आपका विश्वस्त,
जोजेफ जे॰ डोक

[पुनश्चः]

ऑलिखने मुझे बताया है कि आपका जन्म-दिन निकट है। आप चिरजीवी हों और ईश्वर आपको सुखी रखे।

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४८८३) की फोटो-नकलसे।

  1. भगवदगीताका एडविन ऑर्नोल्ड कृत पद्यानुवाद ।
  2. सन् १९०२ में; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३८४।
  3. वही, पृष्ठ १३८-३९ और पृष्ठ १५७-५८।