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परिशिष्ट

हमारे सीमान्त शहरमें हुआ बताता है, और मुसलमान राजनीतिक बन्दियोंको चर्बी खाने या भूखे रहनेपर मजबूर किया होता; यदि उन्होंने भारतकी समतल भूमिमें जन्मे और पले लोगोंको शीतकालकी किसी सुबह—और सो भी ऐसी सर्द हवाके दिनोंमें, जो उनके लिए बहुत सख्त हो—बर्फ-जैसे ठंडे पानी में पूरे एक घंटे तक बिल्कुल नंगा खड़ा रखा होता तो ब्रिटिश सरकारने चौबीस घंटेके अन्दर यह सब बन्द कर देनेके लिए अन्तिम चेतावनी दे दी होती। तथापि यह ब्रिटिश अनिवेश, जिसकी स्थापना मात्र अट्ठारह महीने पूर्व हुई थी और अभी-अभी जो राजनीतिक प्रतिबन्धोंसे मुक्त ही हुआ है, यह सब निःशंक होकर कर रहा है।...श्री गांधीका अपराध वस्तुतः यही है कि वे इन घृणित कानूनोंका विरोध करते हैं; और उन्हें तीरके चौड़े चिह्नोंसे अलंकृत कपड़े पहने हुए, फोक्सरस्टकी सड़कोंपर गिट्टी फोड़कर इस अपराधका फल भोगना पड़ रहा है। भारत में ऐसे सम्माननीय व्यक्ति हैं, जो दर्जेमें नेपाल्के प्रधान मन्त्रीसे, जो हाल में ही इंग्लैंडके सम्मानित अतिथि रहे हैं, कहीं ऊँचे हैं और कई ऐसे हैं जो सेन्ट जेम्सके दरबारमें इस देश के किसी व्यक्तिसे पहले स्थान पाते हैं। लेकिन ऐसे ऊँचेसे-ऊँचे दर्जेके व्यक्ति के लिए भी ट्रान्सवालके कानून में उसी अपमानका विधान हैं।

श्री गांधी, जिन्हें इस देश के कानूनोंके अनुसार सजा दी गई है, उसी वर्गके व्यक्ति हैं, जिसके नेपालके प्रधानमन्त्री हैं। उनके पिता अपनी मृत्युके समय पश्चिमी भारतकी एक रियासतके प्रधानमन्त्री थे और उनका भी वही दर्जा था। श्री गांधी स्वयं भी उच्च शैक्षणिक योग्यताओंवाले व्यक्ति हैं। वे इन्स ऑफ कोर्टके बैरिस्टर हैं। उनका चरित्र बड़ा ऊँचा है और वे आदर्श जीवन बिताते हैं। वे जन्मसे हिन्दू हैं; परन्तु उन्होंने अपने मार्गदर्शनके लिए सभी धर्मोंके सर्वोत्तम तत्त्व स्वीकार कर लिये हैं। उनमें ईसाई धर्म भी शामिल है, जिसका सार उन्होंने अधिकतर नामधारी ईसाइयोंकी अपेक्षा कहीं अधिक सख्तीसे आचरणमें उतारा है।

बताया जाता है कि न्यायाधीशने सजा सुनाते समय कहा था कि मुझे एक ऐसे व्यक्तिको, जो इस देश के न्यायालयोंका वकील है, इस दशामें देखकर दुःख होता है, और यदि मैं न्यायाधीशकी कुर्सीपर न होकर अपने निजी घरमें होता तो इतने ही औचित्यके साथ यह भी कह सकता कि मुझे एक ऐसे कानूनको अमलमें लाने में शर्म महसूस होती है, जिसने एक उच्च विचारोंवाले देशभक्तको अपने देशके सम्मान तथा देशभाइयोंकी खातिर अपनेको बलिदान करनेपर मजबूर किया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-११-१९०८

(५) "ट्रान्सवाल संघर्षपर टिप्पणी " का अंश

शनिवारको भारतीय बन्दियोंको २० से २५ तक की कमानोंमें म्यूनिसिपैलिटीके वॉटर वर्क्सपर काम करने तथा श्मशान साफ करने व सैनिकोंकी कब्रोंकी मरम्मत करनेको भेजा गया था। श्री गांधी भी उनमें शामिल थे। बोअर युद्ध में बीमार तथा घायल व्यक्तियोंकी सेवा करने और हालके नेटाल विद्रोहमें डोली-वाहक दल (स्ट्रेचर बेयरर कोर) का नेतृत्व करनेके बाद उन्हें अपना यह आजका काम सोचकर अजीब लगा होगा—समय बदलता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-११-१९०८

(६) आर॰ एम॰ सोढाका हलफनामा[१]

मैं, नेटालका रतनशी मूलजी सोढा, जो अभी जोहानिसबर्ग में हूँ, गम्भीरतापूर्वक और ईमानदारीसे यह घोषित करता हूँ:

अक्तूबर १४ को श्री गांधीको, कुछ अन्य भारतीयोंको और मुझे फोक्सरस्टमें सख्त कैदको सजाएं सुनाई गई थीं। १५ तारीखकी सुबह श्री गांधीको, मुझे तथा १३ अन्य लोगोंको, करीब १५ वतनियोंके साथ, उस

  1. इसकी तथा तीन और हलफनामोंकी नकलें रिचने उपनिवेश कार्यालयको भेज दी थीं।