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परिशिष्ट

२. जाहिर है कि दो बातोंके सम्बन्ध में जानकारी माँगी गई है। और वे हैं: फोक्सरस्ट में और जोहानिसबर्ग रेलवे स्टेशनसे जेल तक की यात्रा में श्री गांधी के साथ बरताब।

३. पहली बातके सम्बन्ध में, माननीय उपनिवेश मन्त्रीको नवम्बर ३ को भेजे गये तारकी मन्त्रिगण पुष्टि करते हैं। उस तारमें यह कहा गया था कि श्री गांधी, जो हमेशा भारतीय कैदियोंकी कमानमें काम करते हैं, ढाई दिन फोक्सरस्टमें कृषिके प्रदर्शन-स्थलमें कामपर लगाये गये। वहाँ वे पेड़ोंके लिए गढ़े खोदते थे। उसके बाद उनसे म्यूनिसिपैलिटीके तथा जेलके बगीचोंमें काम लिया गया। उन्होंने कभी भी आम सड़कोंपर कठिन मेहनतका काम नहीं किया था। आगे जाँच करनेपर भी यह जाहिर होता है कि भारतीय कैदियोंके साथ जेल्के नियमोंका पालन करते हुए हर तरहकी मुरौवतसे काम लिया जाता था। वे बिल्कुल हलके ढंगका काम करते थे, और पानीकी तो जब भी जरूरत हुई, कभी मनाही ही नहीं की गई। एक कैदी बेहद गर्मीसे बेहोश हो गया था और उसे कूड़ा-गाड़ी में नहीं, जैसा कि आरोप है, बल्कि एक साधारण गाढ़ीमें जेल वापस भेज दिया गया था।

४. दूसरी बातके सम्बन्धमें, मन्त्रिगणका यह निवेदन है कि श्री गांधी फोक्सरस्टले जोहानिसबर्ग-जेलको जेलके नियमोंके अनुसार जेलके ही कपड़ों में भेजे गये थे। जोहानिसबर्ग स्टेशनपर फोक्सरस्टसे यात्रा के दरम्यान साथके सन्तरीने श्री गांधीसे कहा था कि वह उनके लिए एक गाड़ी ला देनेको तैयार है। स्टेशन पहुँचनेपर उसने फिर वह प्रस्ताव दुहराया। फिर भी श्री गांधीने जेल तक पैदल जाना पसन्द किया और नियमों के अनुसार वे अपना सामान खुद उठाकर ले गये। जेल पहुँचनेपर उन्हें मुख्य सन्तरीने दाखिल किया। श्री गांधीने उससे कहा कि मुझे कोई शिकायत नहीं करनी है। अगले दिन जेलके गवर्नर उनसे मिले। उनसे भी उन्होंने वही बात कही।

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड: २९१/१३६

परिशिष्ट ८

जेलमें दुर्व्यवहार : (क) कैदियोंकी पोशाकमें पैदल ले जाये गये

(१) समाचारपत्रोंकी एच॰ एस॰ एल॰ पोलकके २६ अक्तूबर, १९०८ के पत्रका एक अंश

श्री गांधीको शिनाख्तके लिए बिल्कुल अनावश्यक अँगुलियोंकी छाप न देनेके कारण दो महीनेकी सख्त कैदकी सजा हुई है। उनसे फोक्सरस्टकी आम सड़कोंपर काम कराया जा रहा है। इसके लिए किसीको शिकायत नहीं है। यह तो उस दण्डका हिस्सा है, जिसे उन लोगोंको सहन करना है, जिन्हें जनरल स्मट्स अन्तरात्मागत

आपत्ति करनेवाले (कॉन्सेंशस ऑब्जेक्टर्स) कहते हैं। किन्तु क्या श्री गांधीको कैदियोंके वस्त्रोंमें फोक्सरस्टसे जोहानिसबर्ग लानेका, जैसा कि कल हुआ, और उन्हें पार्क स्टेशनसे फोर्ट तक सरेआम पैदल ले जानेका भी कोई औचित्य है? निस्सन्देह यह सब कायदे-कानूनका ही हिस्सा था। मेरा विश्वास है कि जब स्पेनकी ईसाई अदालतें[१] (स्पेनिश इनक्विजीशन) अपराधियोंको, जिनमें शायद मेरे पूर्वज भी रहे होंगे, जलील करना चाहती थीं तब वे उन्हें प्रचलित रीतिसे जिन्दा जला देने से[२] पहले झोलानुमा पीले वस्त्र पहनाकर इसी तरह सड़कोंपर


  1. रोमन कैथॉलिक धर्मके विरुद्ध अपराध करनेवालोंको दण्डित करनेके लिए १३ वीं शताब्दीमें यूरोप के विभिन्न देशोंमें धार्मिक अदालत नियुक्त हुई थीं। ये अदालतें धर्मके नामपर अत्याचार करनेके लिए कुख्यात थीं। अपराधियों को सामान्यतः जीवित जला दिया जाता था, या अन्य यातनाएँ दी जाती थीं। स्पेनमें ऐसी ईसाई अदालतें सबसे अधिक समय, सन् १२३७ से १८२० ई० तक, रहीं।
  2. अपराधियोंको जीवित जला दिये जानेका दण्ड मिलता था, क्योंकि रोमन कैथोलिक चर्चेके नियमानुसार रक्त बहानेका निषेध है।