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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घूमाती थीं। ऐसा नहीं लगता कि हम ट्रान्सवालके अंग्रेज, अपने अपराधियोंका दिमाग दुरुस्त करनेकी अपनी इच्छामें उन मध्ययुगीन यन्त्रणाओंके तरीकोंसे कुछ आगे बढ़े हैं। क्या इसमें कुछ आश्चर्यकी बात है कि भारतीय समाज उत्तरोत्तर कटु और अधीर होता जा रहा है; और क्या आप इसकी सराहना नहीं करेंगे कि उन आघातों और अपमानोंके बावजूद उस समाजके लोग केवल सत्याग्रही बने रहने में सन्तुष्ट हैं और उपनिवेशके अपने यूरोपीय सह-निवासियोंको कष्ट देनेके बजाय स्वयं कष्ट सहन कर रहे हैं? इन गैर-ईसाई लोगोंके ईसाइयों-जैसे उदाहरणको तुलना उनके ईसाई शासकोंकी बर्बर क्रूरताओंसे कीजिए। इस सबके विचार-मात्रसे लज्जा आती है।

[अंग्रेजी से]
इंडियन ओपिनियन, ३१-१०-१९०८

(२) "एक दिल दहलानेवाला दृश्य"[१]

पिछले रविवारको श्री गांधी फोक्सरस्ट जेलसे जोहानिसबर्गकी फोर्ट जेल ले जाये गये। उन्हें डाह्याललाके मुकदमे में सरकारी गवाहके तौरपर अदालत में उपस्थित होनेका आदेश दिया गया था। डाझालालापर जाली पंजीयन प्रमाणपत्र रखने का अभियोग था और अब उनका मुकदमा फौजदारीकी अदालत में भेजा जा रहा है। श्री गांधीको कैदियोंकी वर्दी में एक वार्डरकी देखरेख में जोहानिसबर्ग ले जाया गया। [ब्रिटिश भारतीय] संघको समितिके कुछ सदस्योंको उनके तबादले की खबर लग गई थी, और शामको छ: बजे गाड़ी जब पार्क स्टेशन पहुँची तब वे वहाँ मौजूद थे। श्री गांधी कैदियोंकी वर्दीमें थे। वे अपने कपड़ोंका बंडल एक बड़े थैलेमें लिये थे, जिसपर तीरका चौड़ा निशान बना था। वे एक टोकरी भी लिये थे, जिसमें किताबें थीं। उन्हें हिरासतमें ही पार्क स्टेशनसे फोर्टतक पैदल ले जाया गया। उस समय उजाला हो चुका था और सड़कें तमाशबीनोंसे भरी हुई थीं, जिनमें से कुछने श्री गांधीके भद्दे वस्त्रोंके बावजूद उन्हें पहचान लिया। श्री गांधी आसानीसे पहचानमें आ जायें, ऐसी रंगदार कैदियोंकी वर्दी पहने हुए थे। निस्सन्देह यह सब कायदोंके मुताबिक हुआ, लेकिन यह बात सरकारको एशियाई-विरोधी नीतिका ही दृष्टान्त है कि श्री गांधीका तबादला साधारण कपड़ोंमें हो और उन्हें फोर्ट तक बग्घीमें ले जाया जाये, इस आशयके कोई निर्देश नहीं जारी किये जायें। जबतक सुसंस्कृत भारतीय सत्याग्रहियों और अन्तरात्मागत आपत्ति करनेवालोंके साथ ऐसा बरताव किया जाता रहेगा, जैसे वे कोई जघन्य अपराध करनेवाले असभ्य वतनी हों, तबतक यह संघर्ष जारी रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-१०-१९०८

(३) एच॰ एस॰ एल॰ पोलकका हलफनामा

मैं, जोहानिसबर्गका हेनरी सॉलोमन लिभोन पोलक, गम्भीरतापूर्वक और सच्चे मनसे निम्नलिखित घोषणा करता हूँ:

मैं एक ब्रिटिश प्रजा हूँ, मेरा जन्म इग्लैंडमें हुआ था, और मैं ट्रान्सवालके सुप्रीम कोर्टका अटर्नी हूँ। में ब्रिटिश भारतीय संघका सहायक अवैतनिक मन्त्री हूँ। मैं गत २५ अक्तूबर रविवारको तीसरे पहर उस समय मौजूद था जब श्री गांधी नेटालवाली गाड़ीसे फोक्सरस्टसे [यहाँ] पहुँचे। वे हिरासतमें थे और कैदियोंकी वर्दी पहने थे। वे एक बड़ा वंडल और किताबों की एक टोकरी लिये थे। गाड़ी नियत समयपर शामको ६ बजे आई। उस समय दिनका पूरा उजाला था। सूरज उसके काफी देर बाद डूबा। श्री गांधीको स्टेशनसे जोहानिसबर्ग जेल तक आम सड़कोंसे पैदल ले जाया गया। इसमें कोई बारह मिनट लगे होंगे। इस सारे

  1. यह साप्ताहिक स्तम्भ "ट्रान्सवालके संघर्षेपर टिप्पणियाँ: हमारे संवाददाता की ओरसे" के अन्तर्गत छापा गया था।