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परिशिष्ट

समय काफी उजाला रहा होगा। मैं श्री गांधीके बगलमें चलता हुआ जेलकी और कुछ दूर तक गया। जेलसे आवे रास्तेपर मैं श्री गांधीसे अलग हो गया। इसके बाद अपनी ट्राम पकड़नेके लिए मैं वापस कोई दस मिनटतक चला और फिर घर चला गया। जब मैं घर पहुँचा, उस समय भी दिनकी धुँधली रोशनी थी। जब श्री गांधी सड़कोंसे गुजर रहे थे तब हरएक राहगीर उन्हें साफ देख सकता था और कई लोगोंने उन्हें पहचान लिया। उस संध्याको सूर्यास्तका समय ६ बजकर १७ मिनट था। मैं यह बयान इसलिए दे रहा हूँ कि, कहा गया है, श्री गांधीको सूर्यास्त के बाद सड़कोंसे ले जाया गया था। यह बात सच नहीं है। जितने समय में श्री गांधीके साथ रहा, दिनका पूरा उजाला था[१]

(हस्ताक्षर) एच॰ एस॰ एल०॰पोलक
मेरे सामने,
(हस्ताक्षर) ए॰ एल॰ सी॰ बारट्रॉप
जस्टिस ऑफ द पीस

जोहानिसबर्ग में


आज ३० नवम्बरको घोषित


[अंग्रेजीसे]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: २९१/१३२

(ख) हथकड़ियाँ पहनाकर पैदल चलाया गया

(१) 'रैंड डेली मेल' को पादरी जे० जे० डोकका पत्र[२]

[जोहानिसबर्ग
मार्च ११, १९०९]

सेवामें


सम्पादक
'रैंड डेली मेल'


महोदय,

जैसा कि आपके अधिकतर पाठक जानते हैं, श्री गांधी अपनी शिनाख्तके साधन प्रस्तुत न करनेके अपराध में तीन महीनेकी कड़ी कैदकी सजा भोग रहे है।

उन्हें अब फोक्सरस्ट से हटाकर प्रिटोरियाफी सेंट्रल जेलमें तनहाई में रखा गया हैं।

कल उनका किसी मुकदमे के सिलसिलेमें मजिस्ट्रेटकी अदालत में उपस्थित होना जरूरी हो गया था। मुझे पता चला है कि उन्हें साधारण कपड़ोंमें, लेकिन हथकड़ी लगाकर जेलकी कोठरीसे वहाँ लाया गया।

निःसन्देह हममें कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें यह जानकर खुशी होगी कि इस महान भारतीय नेताको बराबर अपमानका शिकार बनाया जा रहा है; लेकिन मैं यह आशा करनेका साइस करता हूँ कि हमारे अधिकांश उपनिवेश इस बातपर लज्जित और कोधित होंगे कि श्री गांधी-जैसे चरित्र और प्रतिष्ठावाले व्यक्तिको अकारण ही इस प्रकार अपमानित किया जा रहा है।


  1. ऐसा ही एक हलफनामा थम्बी नायडूने भी दिया था। ये उन इलफनामोंमें शामिल थे, जिनकी नकल एल॰ डब्ल्यू॰ रिचने २१ दिसम्बरको उपनिवेश कार्यालयको भेजी थीं।
  2. यह पत्र और इसके बादवाला पत्र, दोनों ही २०-३-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में पुनः प्रकाशित किये गये थे। इसके अतिरिक्त २७-३-१९०९ के इंडियन ओपिनियनमें "हैंडकफ्ड" (हथकड़ी पढ़नाई गई) शीर्षकसे एक सम्पादकीय भी छपा था।