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परिशिष्ट १०

काफिरका मामला

(१) 'रैंड डेली मेल' के ५-१०-१९०९ के अंकमें ' साम्राज्यकी एक दारुण विपत्ति' ('ए ट्रेजडी ऑफ़ एम्पायर') पर श्री एच० एस० एल० पोलककी जो आलोचना छपी थी, उसका अंश:

"...कहा जाता है कि जब श्री गांधी जेलमें थे, उन्हें 'एक काफिरने पकड़ लिया, ऊपर उठाया और जोरसे जमीनपर पटक दिया था। अगर श्री गांधीने गिरते-गिरते दरवाजेकी चौखट न पकड़ ली होती तो जरूर ही उनका सिर फट गया होता।"

(२) 'पादरी जे० जे० डोक द्वारा ७ अक्तूबरको 'रैंड डेली मेल' में लिखे पत्रका अंश:

"इस विषयपर आपके मंगलवार के अंक में एक सम्पादकीय टिप्पणी छपी है। मैं देखता हूँ कि उसमें आपने श्री पोलकके इस कथनको सच माननेमें झिझक दिखाई है कि जब श्री गांधी जोहानिसबर्ग जेलमें थे तब उनपर एक काफिरने क्रूरतापूर्ण हमला किया था। आपने लिखा है, 'श्री गांधीने जेल-अधिकारियोंसे शिकायत करके उस काफिरको सजा दिलाई थी या नहीं, यह नहीं बताया गया है।'... और आप आगे लिखते हैं, 'कुछ भी हो, हमें हमला ऐसा नहीं मालूम होता जिसके लिए ट्रान्सवाल सरकार जिम्मेदार ठहराई जा सके।"

संयोगसे जो जानकारी नहीं दी गई है वह मैं दे सकता हूँ । जब मुझे इस लज्जाजनक हमलेकी बात मालूम हुई, जिसका ब्योरा जैसा स्वाभाविक ही है, आपने नहीं छापा, तब मैंने स्वयं इसके बारेमें श्री रूजसे बातचीत की। श्री रूजने इसपर खेद प्रकट किया और बताया कि श्री गांधी उन्हें यह बात बता चुके हैं। मेरा खयाल है, काफिरको सजा नहीं दी गई थी, क्योंकि श्री गांधीने अपनी अन्तरात्मताके अनुरोधपर उस व्यक्तिकी शिनाख्त न करनेका निश्चय कर लिया था, जिसने उनको चोट पहुँचाई थी। इसी प्रकार उन्होंने उस पठानपर मुकदमा चलानेसे भी इनकार कर दिया था जिसने उनपर हमला किया था।

रही सरकारकी जिम्मेदारीकी बात—इस बारेमें मैं आपकी रायसे सहमत नहीं हो सकता। यह बिल्कुल सही है कि हमलेसे सरकारका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था। इसपर निजी तौरपर बहुत खेद भी प्रकट किया गया और इसमें मुझे सन्देह नहीं कि इस घटनाके होनेपर खेद अनुभव भी किया गया; लेकिन फिर भी जिस प्रणालीके अन्तर्गत यह घटना सम्भव हुई उसको जिम्मेदार सरकार है। सच बात यह है कि अनाक्रामक प्रतिरोधी भारतीय वर्तनियों और अपराधियोंके वर्गमें रखे गये हैं और जहाँतक में जानता हूँ, इस स्थितिको बदलवाने की सब कोशिश बेकार गई हैं। श्री गांधी 'वतनी' के रूपमें एक बार वतनियोंके साथ एक ही कोठरी में रखे गये थे। वहाँ उन्हें सारी रात घोर यातना सहनी पड़ी, जिसका वर्णन श्री पोल्कने किया है। 'वतनी' के रूपमें उन्हें वर्तनियोंके साथ रहना पड़ा और उस मजबूरीकी हालत में उनपर यह हमला किया गया। अब जहाँतक हो सकता है वहाँतक भारतीयोंको ही साथ-साथ रखनेका प्रयत्न किया जा रहा है और मेरा खयाल है, वह सफल भी हुआ है। लेकिन जबतक भारतीय अपराधियोंके रूपमें वतनियोंके वर्ग और वतनी वार्डरोंको निगरानीमें रखे जाते हैं तबतक किसी भी क्षण वैसी घटना हो सकती है जैसी श्री गांधी के साथ फोर्टमें, नागप्पनके साथ योकस्काई रिवर कैम्प जेलमें और दूसरे लोगोंके साथ विभिन्न जेलोंमें हुई है।"

[अंग्रेजोसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१०-१९०९