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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वयं जनरल स्मटसने "अन्तरात्मागत आपत्ति करनेवाले" कहा है उनमें से करीब ९०० लोगोंको आन्दोलनका नया दौर होनेसे अबतक चार महीनों में कड़ी कैदकी सजाएँ दी गई हैं। जेलमें उनके साथ आदिवासी वतनी बदमाशोंके समान बरताव किया गया है; और जेलका खाना उनकी जातीय आदतोंके बिल्कुल अनुकूल नहीं है। असल में कुछ जेलों में धार्मिक दृष्टि से "अपवित्र" भोजन दिया गया है। इसके कारण बहुत-से एशियाई कैदी अध-पेट रहे हैं। इसमें भी कोई सन्देह नहीं हो सकता कि जबसे यह आन्दोलन आरम्भ हुआ है तबसे पिछले दो सालसे ज्यादा अरसेसे एशियाई जातियोंको भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। इसमें उनका वास्तविक खर्च भी ज्यादा हुआ है और उन्हें व्यापारपर प्रतिबन्ध होनेसे व्यापारिक हानि भी हुई है। वर्तमान अस्थिरताके कारण एशियाइयोंको बहुत मानसिक चिन्ता भी रही है और इसकी प्रतिक्रया आवादीके सभी वर्गोंपर हुई है।

जहाँतक हमारी बात है, हमने अपनी निजी जाँच-पड़तालसे यह इतमीनान कर लिया है कि एशियाई लोग जिस बातको अपना वास्तविक अधिकार समझते हैं उसकी प्राप्तिका संघर्ष सचाई और दृढ़तासे चला रहे हैं। उन्होंने अपने कर्तव्यों के पालनमें काफी साहस, आत्मत्याग और सच्चा इरादा दिखाया है, जिसकी प्रशंसा सभीने की है। उनके कई नेता, जो आज अपने देशवासियोंकी खातिर जेलमें हैं, पढ़े-लिखे आदमी हैं और उनसे किसी भी समाजका सम्मान बढ़ेगा। उनमें ऊँचे धन्धोंके लोग, धनी व्यवसायी, पंडित-मौलवी और प्रसिद्ध व्यापारी हैं। जो लोग आज जेलमें हैं उनमें एशियाई जातियोंके फेरीवालोंसे लेकर थोक व्यवसायी तक और क्लार्कसे लेकर ऊँचे धन्धोंके लोगों तक, सभी वर्गोंके प्रतिनिधि हैं। उनमें सभी धर्मों और जातियोंके लोग शामिल हैं। एशियाश्योंने ऐसी एकता दिखाई है जो प्रशंसाके योग्य और आशातीत है। हम यह अनुभव करते हैं कि इस आन्दोलनके जारी रहनेसे इस देशके वाणिज्य व्यवसायपर बहुत हानिकर प्रभाव पड़ेगा और इसको एक राष्ट्रका रूप देने में जो बहुत-सी कठिनाइयों हैं उनमें अनावश्यक वृद्धि होगी।

ऐसी स्थितिम हम विश्वास करते हैं कि ट्रान्सवाल सरकार ऊपर बताये गये आधारपर समझौता करनेका प्रयत्न करेगी। हमारी रायमें एशियाई लोगोंकी माँगें ऐसी नहीं हैं जो मानी न जा सकें। जो संघर्ष इस समय चल रहा है उसके सच्चे स्वरूपके बारेमें ब्रिटेनकी जनताके गुमराह होनेका खतरा है। हमें ऐसा लगता है कि अगर भविष्यमें प्रतिनिधित्व-हीन वर्गोंके सम्बन्ध में उनके नेताओंसे सलाह किये बिना कोई कानून न बनाया जाये यह बुद्धिमत्ता और दूरदर्शित्ताकी बात होगी। सरकार यूरोपीयों और एशियाश्यों की होड़ में सन्तुलन रखनेके जो प्रयत्न कर रही है उन सबसे हमारी पूरी सहानुभूति है। हम चाहते हैं कि यह बात समझ ली जाये। लेकिन इस उद्देश्यको पूरा करनेके लिए बुद्धिमत्ता इसमें होगी कि नगरपालिकाके, सफाईके और दूसरे मौजूदा मानदण्डोंको केवल कड़ाईसे लागू ही न किया जाये, बल्कि उनके स्तरको और भी ऊँचा किया जाये। लेकिन हम सादर निवेदन करते हैं कि एशियाइयोंको विकासके अवसरोंसे वंचित करने और इस तरह उनकी आवश्यकताओंको बढ़ानेके बजाय कम करनेकी यूरोपीय प्रजातिपर जो हानिकर प्रतिक्रिया होगी उससे ज्यादा हानिकर प्रतिक्रिया किसी दूसरी चीजकी न होगी।

आपके, आदि,
डव्यू॰ एम॰ हॉस्केन, एम॰ एल॰ ए॰
एच॰ कैलेनबैक
जोज़ेफ जे॰ डोक
और २४ अन्य

[अंग्रेजीसे]
टाइम्स, ६-१-१९०९