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परिशिष्ट


इस शपथके परिणामस्वरूप सभी जातियों, वर्गों और धर्मोका प्रतिनिधित्व करनेवाले २,५०० से अधिक भारतीयोंने जेलका कष्ट भोगा है। ट्रान्सवालमें अथवा दक्षिण आफ्रिकाके कुछ अन्य उपनिवेशोंमें रहनेवाले अनेक भारतीयोंको मोजाम्बिक प्रान्तके पुर्तगाली प्रशासनकी सहायतासे एक क्षण नोटिसपर सीधे भारत भेज दिया गया है। यहाँतक कि कुछ लोगोंको अपने परिवार और व्यापारकी देखरेखकी समुचित व्यवस्था किये बिना जाना पड़ा है। अनेक घर उजड़ गये हैं। बहुत-से व्यापारी कंगाल हो गये हैं। बहुत-से परिवारोंको भारतीय समाज द्वारा एकत्र किये गये चन्देकी रकमसे सहायता दी जा रही है।

हम उपनिवेशमें भारतीयोंका निर्वाध प्रवेश नहीं चाहते। हम इस उप-महाद्वीपमें गोरोंकी प्रधानता के सिद्धान्तको स्वीकार करते हैं। हम केवल यह दावा करते हैं कि अन्य उपनिवेशोंके विपरीत ट्रान्सवाल सरकार जाति-भेदपर आधारित परीक्षा लागू करके, श्री चेम्बरलेनके शब्दोंमें, भारतके करोड़ों लोगोंकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचा सकती।

हम सब पार्टियोंसे, सब ब्रिटिश प्रजाओंसे अपील कर चुके हैं। और उन सबने हमारा समर्थन किया है। यहाँ तक कि ट्रान्सवालमें भी यूरोपीय समाजके प्रमुख सदस्योंकी एक यूरोपीय समिति, जिसके अध्यक्ष श्री विलियम हॉस्केन, एम॰ एल॰ ए॰ हैं, हमारा समर्थन करती रही है।

हमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि भारतका सम्मान आंग्ल-भारतीयोंको भी उतना ही प्यारा है जितना कि भारतीयोंको। अतः आपके जरिए हम समस्त आंग्ल-भारतीय समाजसे अनुरोध करते हैं कि इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थितिका अंत करनेमें आप जिस तरह उचित समझें उस तरह हमारी सहायता करें।

संघर्षकी लगभग असहनीय कठिनाइयोंके कारण बहुत-से लोग टूट गये हैं। किन्तु वीरोंका दल बारम्बार अपनेको गिरफ्तार करवा रहा है। वे मृत्युपर्यन्त संघर्ष करनेके लिए दृढसंकल्प हैं। इस अपीलको लिखते समय ट्रान्सवालकी जेलोंमें २०० सत्याग्रही हैं। सरकारने हमारी आवाज बन्द करनेकी नीयतसे पाँच ऐसे सत्याग्रहियोंको गिरफ्तार कर लिया है जिन्हें शिष्टमण्डलके रूपमें भारत और इंग्लैंड जानेके लिए चुना गया था। हम राहत की प्रार्थना करते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-७-१९०९

परिशिष्ट १६

गांधीजीके नाम लॉर्ड ऍस्टहिलका पत्र

गोपनीय

जुलाई २९, १९०९

प्रिय श्री गांधी,

मैं अभी-अभी घर वापस लौटा हूँ, और लौटते ही आपका कलका पत्र मुझे मिला। मैं एक स्थानीय "तमाशे" के बीच आपके पत्रका शीव्रता में उत्तर दे रहा हूँ।

इससे अधिक दुर्भाग्यकी कोई बात नहीं होगी कि सर मंचरजी और मेरे उद्देश्योंमें परस्पर विरोध हो ऐसी किसी सम्भावनाको हर कीमतपर टालना चाहिए।

आपने मुझे लिखा है कि सर मंचरजी आग्रह कर रहे हैं। मैं तो उस तरह आग्रह नहीं कर सकता। मैं केवल सलाह दे सकता हूँ। मेरी और उनकी सलाइके बीच चुनाव करना आपका काम है।

आपके सामने "कूटनीतिक" और "राजनयिक" तरीकोंमें से कोई एक चुननेका विकल्प है।