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परिशिष्ट


यदि १९०७ का अधिनियम रद कर दिया जाये और यदि यह वचन दे दिया जाये कि ट्रान्सवालमें प्रति वर्ष ६ व्यक्तियोंको आपके प्रस्तावके अनुसार प्रवेश दिया जायेगा तो क्या आप संतुष्ट हो जायेंगे? क्या ट्रान्सवालमें भारतीय समाज अन्याय और अपमानकी जिस भावनासे पीड़ित है, वह उसके बाद उसके मनसे बिल्कुल हट जायेगी?

यह जोर देकर कहा जाता है कि भारतीय कभी सन्तुष्ट नहीं होंगे और रियायतें देते ही नई माँगे पेश की जाने लगेंगी। कृपया साफ-साफ कहिए कि ऐसी आपत्ति उठनेपर मैं क्या कहूँ। मुझे इसका जवाब देना पड़ेगा।

उच्च अधिकारियोंका विश्वास है कि ट्रान्सवाल सत्याग्रहको भारतका राजद्रोही दल, जो नहीं चाहता कि इस मसलेका कोई हल निकल सके, उत्तेजित करता है और आर्थिक सहायता देता है। इसके कारण उनके मनमें उसके लिए प्रतिकूल भावना है। कृपया मुझे बताइए कि मैं इसके खण्डनमें क्या कहूँ।

निःसन्देह आप यह पत्र अपने सहयोगीको दिखा सकते हैं और यदि आप इसे श्री रिचको भी दिखा दें तो बड़ी कृपा होगी, क्योंकि मेरे पास उन्हें अलगसे यह सब लिखने का समय नहीं है। किन्तु कृपया किसी दूसरेको न दिखायें।

आपका विश्वस्त,
ऍम्टहिल

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९६५) से।

परिशिष्ट १८

एम० के० गांधी: एन इंडियन पेट्रिअट इन साउथ आफ्रिका
की
लॉर्ड ऍम्टहिल द्वारा लिखित भूमिका

इस पुस्तकके लेखकसे मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं है। परन्तु जिस उद्देश्यकी हिमायत उन्होंने इतने साहस और इतनी निष्ठासे की है उसके सम्बन्ध में उनकी तथा मेरी भावनाएँ एक-जैसी हैं, और हम समान सहानुभूतिके बन्धनसे बँधे हुए हैं।

जो लोग मेरे इस मन्तव्यको स्वीकार करनेके लिए तैयार हों कि यह पुस्तक पढ़ने लायक है, उनसे मैं इसे पढ़ने की सिफारिश करता हूँ। मैं सादर सुझाव देता हूँ कि दूसरे लोग भी, जो मेरी रायको कोई महत्त्व नहीं देते, इस पुस्तकमें दी गई जानकारीसे लाभ उठा सकते हैं। यह जानकारी एक ऐसे प्रश्न के सम्बन्ध में है जिससे दुर्भाग्यवश इस देश में बहुत कम लोग परिचित हैं। लेकिन फिर भी वह अत्यन्त महत्त्वका साम्राज्य-सम्बन्धी प्रश्न है।

श्री डोकका दावा यह नहीं है कि उन्होंने इस पुस्तकमें ट्रान्सवालके भारतीय समाजके नेता श्री मोहनदास करमचन्द गांधीको संक्षिप्त जीवनी और चरित्रके परिचयसे कुछ ज्यादा दिया है। लेकिन पुस्तकका महत्व इन तथ्योंके कारण है कि सब मानवीय कार्यों में व्यक्ति और मामले गुँथे होते हैं और उन्हें अलग नहीं किया जा सकता; दूसरे, खास तौरसे राजनीतिक मामलोंको ठीक तरहसे तभी समझा जा सकता है जब उन मामलोंको संचालकोके चरित्र और हेतु जान लिये जायें।

मैं मीमांसा करने की स्थिति में नहीं हूँ, फिर भी इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं कि इन पृष्ठोंमें दिये गये तथ्य सही हैं; और मेरे पास यह विश्वास करनेका भी पर्याप्त आधार है कि सराहना संतुलित है।