पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/६२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५९१
परिशिष्ट


इसके साथ प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनके उस संशोधनकी नकल भेज रहा हूँ जो कुछ दिन पहले आपको श्री गांधीने सुझाया था। मैंने इसके अन्त में एक धारा जोड़ दी है, जिससे मुझे लगता है, यह जरूरत पूरी हो जाती है। मैं आपसे इसपर विचार करनेकी प्रार्थना करता हूँ। आप देखेंगे कि इससे एशियाइयों और दूसरे प्रवासियों में ईर्ष्याजनक भेदभाव नहीं होता और प्रकारान्तरसे आपको वह सत्ता मिल जाती है जो शायद भावी स्थितियों में उपयोगी हो सकती है। जहाँतक मैं समझता हूँ, इससे आपका उद्देश्य बिलकुल पूरा हो जाता है।

साम्राज्य के दृष्टिकोणसे जो चीज मुझे परेशान और चिन्तित करती है, यह है: अबतक टिश भारतीयको साम्राज्यके किसी भी भागमें जानेका सैद्धान्तिक हक प्राप्त रहा है। यह सैद्धान्तिक हक पिछले कुछ सालोंसे ट्रान्सवालमें ही छीना और अमलमें सीमित किया गया है। मुझे ऐसा लगता है कि इस निर्योग्यताके स्थायी बनाये जानेसे और इसके फैलाव की सम्भावनासे भारतमें अंग्रेजोंका असर और नाम भारी खतरेमें पड़ जायेगा। इसी कारण मैंने इस मामलेमें इतना आग्रह किया है।

हृदयसे आपका,

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: २९१/१४१

(२) लॉर्ड क्रू के नाम लॉर्ड ऍम्टहिलका पत्र

अगस्त ११, १९०९

प्रिय लॉर्ड क्रू,

मैं जो-कुछ लिख रहा हूँ वह अगर आपको बेजा हस्तक्षेप लगे तो मुझे क्षमा करेंगे। पत्रको टाइप करवा कर भेजनेके लिए भी क्षमा-प्रार्थी हूँ। गर्मी इतनी है कि शान्तिसे लिखा नहीं जाता।

मैंने कल जनरल स्मट्स और श्री गांधी से लम्बी बातचीत की। मुझे यह देखकर बहुत निराशा हुई कि "अधिकार" के भावात्मक प्रश्नपर दोनों के विचारोंमें कोई मेल सम्भव नहीं है। आप दोनों पक्षोंके विचारोंको इतनी अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे ज्यादा स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है। लेकिन आपको यह बतानेके उद्देश्यसे कि मैं क्या कर रहा हूँ, इसके साथ एक पत्रकी नकल भेज रहा हूँ। यह पत्र मैंने अभी-अभी जनरल स्मट्सको लिखा है। मैंने इसमें जो सुझाव दिये हैं वे मेरे अपने हैं, अर्थात् वे श्री गांधी और जनरल स्मटसके बीच मध्यस्थता करनेके तौरपर नहीं दिये गये हैं, क्योंकि ऐसी मध्यस्थता करना तो आपका ही काम है।

अब चूँकि आप अपनी बातचीतको जोरोंसे चला रहे हैं, इसलिए मैं आशा करता हूँ कि शायद मेरे सुझाव विचारके अयोग्य न जान पड़ेंगे।

मैं बहुत चिन्तित हूँ कि यह कठिन प्रश्न तय किया जाना चाहिए। अपने विचार आपके सामने रखनेकी धृष्टताकी मेरे पास यही आड़ है।

मैं चाहता हूँ कि लोकसभामें दक्षिण आफ्रिका विधेयकके तीसरे वाचनके अवसर पर "उपसंहार" के रूपमें जो बात कही जाये वह यह हो कि कर्नल सीली आपकी ओरसे यह घोषणा करें कि ट्रान्सवाल सरकारने सहज भावसे एक उदारता दिखानेका निश्चय किया है, ताकि भारतीय दक्षिण आफ्रिका संघ बननेकी खुशी मनाने में हिस्सा ले सकें।

यह एक लांछन होगा कि एक उदार दलीय सरकारके रहते ट्रान्सवालके भारतीय उस अधिकार से वंचित कर दिये गये, जो उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यके दूसरे सब भागोंमें, सिद्धान्त रूपमें ही सही, प्राप्त हैं। क्या इस लांछनसे बचना आपकी सरकारके लिए बहुत बड़ी नेकनामीकी बात न होगी और क्या यह कार्य करने योग्य न होगा?